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      || पिघल रही है ग्लेशियर ||

      पिघल रही है ग्लेशियर

      हर घड़ी हर पल धुवों की पिघल रही है ग्लेशियर,
      गोमुख पीछे हो गया उन्नीस बीस किलोमीटर ।

      एक सीमा तक बढ़ता जायेगा नदियों में जल,
      ढायेगी हर वर्ष नदियाँ बाढ़ से हम पर कहर ।

      समाप्त हो जायेंगे हिम पर्वत जब पिघल पिघल,
      सूख जायेंगी तब नदियां गर्म होगा हर प्रहर ।

      हो जायेंगी गंगा,यमुना मानसून पर निर्भर,
      बढ़ता जायेगा फिर सूखे का प्रकोप ज्यूं जहर ।

      त्राहि-त्राहि कर उठेगा,उस समय सारा जगत,
      वन ही राम बाण होंगे बस,ऐसे विकट समय पर ।

      वन ही ऐसा स्रोत है जो बस बचा सकता हमें,
      इसलिये वन की रक्षा में जुटें हर नारी हर नर ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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