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      || सास का प्यार मिला | SAAS KA PYAAR MILA ||

      काकी सास का प्यार मिला

      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला,
      गोरी,नारी,दुबली पतली थी जिसका मुझे दुलार मिला ।

      बच्चे नहीं थे उसे किन्तु वो माने थी इनको औलाद,
      आई गाँव से साथ में रहने,काका की मृत्यु के बाद ।
      मुझे कामना थी सासू की,सपनों का संसार मिला ,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

      फिसल गई थी काकी इक दिन कूल्हे की हड्डी टूटी,
      चलने से लाचार हुई जीने की अभिलाषा छूटी ।
      मुझे मिला मौका सेवा का,कर्तव्य का भार मिला,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

      खाना पीना और दवा नियम से मैं उनको देती,
      दैनिक क्रिया,शरीर पोछना,कंघी आदि कर देती ।
      उसे सुलाकर ही सोती मैं भावों का संचार मिला,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

      इतनी दुआ देती थीं, बनी सास से अब वो माँ,
      लगता था मैं उसकी धड़कन और वो है मेरी दुनियां ।
      इतना आकर्षण दोनों में जैसे सुर का तार मिला,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

      यदि जल्दी में गई मैं दफ्तर मुझे नहीं वो पाई देख,
      घिसट-घिसट आँगन में आती बिना लगाये ही कुछ टेक ।
      सोच घिसट कर आना उसका,मन रोता हर बार मिला,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

      सेवा टहल, आहार दवा ने कुछ ऐसा सुधार किया,
      शल्य क्रिया दिनांक से पहले हड्डी जुड़ आधार दिया ।
      डाक्टर थे हैरान उन्हें इसमें बस चमत्कार मिला,
      सास नहीं थी मेरी फिर भी काकी सास का प्यार मिला ।

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      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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