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      संकष्टी चतुर्थी आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      गणेश चतुर्थी व्रत भगवान श्री गणेश जी को समर्पित है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार हर महीने में दो चतुर्थी आती हैं। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। हर महीने आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है , जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है ।

      अश्विन गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत मंगलवार, 13th सितंबर, 2022 को हैं। 

      संकष्टी चतुर्थी का समय
      • 13th सितंबर, 10:37 पूर्वाह्न।
      • 14th सितंबर, 10:25 पूर्वाह्न।
      • चंद्रोदय समय: रात 08:51 बजे।
      संकष्टी चतुर्थी का महत्व

      नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन पूरे दिन उपवास रखना चाहिए। कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं। इतना ही नहीं पूजा से घर में शांति बनी रहती है। घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं। भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस दिन चंद्रमा को देखना भी शुभ माना जाता है। सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है। साल भर में 13 संकष्टी व्रत रखे जाते हैं। हर संकष्टी व्रत की एक अलग कहानी होती है।

      कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमानुसार ही संपन्न करना चाहिए। तभी इसका पूरा लाभ मिलता है। इसके अलावा गणपति बप्पा की पूजा करने से यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

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      संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

      गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लें। पूजा की तैयारी करें और गणेश जी को उनकी मनपसंद चीजें जैसे मोदक, लड्डू और दूर्वा घास चढ़ाएं।

      गणेश मंत्रों का जाप करें और श्री गणेश चालीसा का पाठ करें और आरती करें।

      संकष्टी का व्रत चंद्र दर्शन तक रखा जाता है। चंद्र दर्शन के बाद व्रत तोड़ें और प्रसाद आदि बांटें।

      संकष्टी चतुर्थी कथा 

      कहते हैं कि बिना व्रत कथा सुने या पढ़े व्रत पूरा नहीं माना जाता और व्रत का फल नहीं मिलता। संकष्टी चतुर्थी की कथा इस प्रकार है। 

      एक समय की बात है भगवान विष्णु जी की शादी मां लक्ष्मी जी से होनी तय होती है। विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं को दे दिया जाता है, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया जाता। विवाह के दिन सभी देवी-देवता अपनी पत्नियों के साथ विष्णु जी की बारात में पहुंच जाते हैं लेकिन किसी को गणेश जी वहां दिखाई नहीं देते। सभी आपस में गणेश जी के न आने की चर्चा करने लगते हैं। और इसके बाद भगवान विष्णु जी से गणेश के न आने का कारण पूछते हैं।

      भगवान विष्णु देवी-देवताओं के पूछने पर जवाब देते हैं कि गणेश जी के पिता जी भोलेनाथ को न्योता भेज दिया गया है। अगर उन्हें आना होता तो वे अपने पिता भगवान शिव के साथ आ जाते, अलग से न्योता देने की आवश्यकता नहीं है। वहीं, अगर गणेश जी आते हैं तो उन्हें सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर खाने के लिए चाहिए। दूसरों के घर जाकर इतना कुछ खाना अच्छी बात नहीं है। अगर गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। किसी ने विष्णु जी की सलाह दी कि गणेश जी आ भी जाएं, तो उन्हें द्वारपाल बना कर घर के बाहर बैठा देना। आप तो चूहे पर बैठकर बहुत धीरे-धीरे चलोगे तो पीछे रह जाएंगे। इसलिए घर के बाहर द्वारपाल की तरह बैठाना ही उन्हें सही रहेगा। सभी को ये सुझाव अच्छा लगा भगवान विष्णु को भी ये सुझाव अच्छा लगा।

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      गणेश विष्णु जी के विवाह में पहुंच गए और सुझाव के अनुसार उन्हें घर की रखवाली के लिए घर के बाहर बैठा दिया गया। नारद जी ने गणेश जी से बारात में न जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने गणेश जी को सलाह दी कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, ताकि वो रास्ता खोद दें और उनका वाहन धरती में ही फंस जाए। तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा। नाराद जी की सलाह के अनुसार मूषक सेना ने धरती खोद और विष्णु जी का रथ उसी में फंस गया। लाख कोशिश के बाद भी तब उनका रथ नहीं निकला, तो नाराद जी ने कहा कि- आपने गणेश जी का अपमान किया है अगर उन्हें मना कर लाया जाए, तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है।

      भगवान शिव ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया। तब रथ के पहिए निकले। पहिए निकलने के बाद देखा कि वे टूट-फूट गए हैं। अब उन्हें कौन सही करेगा? 

      पास के खेतों में खाती काम कर रहे थे, उन्हें बुलाया गया। उन्होंने श्री गणेशाय नमः कहकर गणेश जी की वंदना की। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया और देवतागणों को भी सलाह दी कि किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करने से कार्य में कोई संकट नहीं आता। गणेश जी का नाम लेते हुए विष्णु जी की बारात आगे बढ़ गई और लक्ष्मी मां के साथ उनका विवाह संपन्न हो गया।

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