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      मंत्र शक्ति का वैज्ञानिक रहस्य | 2YoDo विशेष

      आप अपने आस-पास नित्य प्रति देखते हैं किसी की झोली में फूल भरे हुए हैं, किसी की झोली में कांटे ही कांटे हैं। एक व्यक्ति को मखमल के बिस्तर पर नींद नहीं आती, एक कांटों की सेज पर चैन की नींद सो रहा है। किसी को जहरीले सर्प ने काट लिया फिर भी जीवित बच गया, किसी का एक छोटी-सी चींटी ने नाम निशान मिटा दिया। कोई समुद्र के किनारे खड़ा होकर भी प्यासा है, कोई एक बूंद से अपने मन को तृप्त कर लेता है, कोई जीवन भर पूजा-पाठ करके भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर पाता तो किसी को मिट्टी से मोती, पत्थर से परमात्मा मिल जाता है।

      इसका एक ही कारण है कि पहले भाग्य बनता है फिर शरीर मिलता है, मानव को इस जन्म में अपने पूर्वजन्म के कर्मों अनुसार ही जाति, कुल, विध, पद, धन, सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय, यश-अपयश आदि प्राप्त होते हैं। पूर्व जन्म में हमने जैसे कर्म किए हैं इस जन्म में हमें वैसे ही फल की प्राप्ति होगी। तभी तो कहा है कि ‘समय से पहले भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता’।

      आप भी अपनी झोली फूलों से भरना चाहते हैं तो चिंता मत कीजिए चिंतन कीजिए, असंभव शब्द मूर्खों के शब्द-कोश में होता है। मंत्र का जप भाग्य के लिखें हुए को मेटनें में सक्षम है, जगह जब गन्दी हो जाती है तो साफ हो सकती है।

      मन मोहन भाग्य रेखा मेट सके ना राम।

      मंत्र की शक्ति से सम्भव जपो  सुबह और शाम॥

      मंत्र साधना से अन्दर की सोई हुई चेतना को जागृत किया जा सकता है। आन्तरिक शक्ति का विकास करके महान बना जा सकता है। मंत्र के जाप से मन की चंचलता नष्ट हो जाती है। जीवन संयमित बनता है। स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है। एकाग्रता प्राप्त होती है। ‘मननात त्रायते इति मंत्रा’ मनन करने पर जो रक्षा करे उसे मंत्र कहते हैं।

      एक प्रकार से विशेष शब्दों का समूह जप करने पर मन को एकाग्र करके अभिष्ट फल की प्राप्ति कराएं उसे मंत्र कहते हैं। भगवान श्रीराम, शबरी को कहते हैं-

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      मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा।

      पंचम भजन सो वेद प्रकाशा।।

      मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास यह पांचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्घ है। 

      मंत्रा शक्ति के द्वारा ही लक्ष्मणजी ने सीताजी की कुटी के चारों तरफ जमीन पर एक रेखा, सीताजी की रक्षा के लिए खींची थी जिसे मायावी रावण भी नहीं लांघ पाया था।

      योग योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ‘यज्ञानाम् जपयज्ञो आस्मि’ अग्नि पुराण में लिखा है ‘ज’ से जन्म-मरण का नाश, ‘प’ से पाप का विनाश। जन्म मरण से रहित कर दें, पापों का विनाश कर दें उसे जप कहते हैं। भगवान बुद्घ ने भी मंत्र शक्ति के बारे में कहा था, ‘यह मानवता के साथ प्रत्येक हृदय को एक कर सकती है’।

      ‘पूजा कोटि समं स्तोत्रां, स्तोत्रा कोटि समं जप:’ शास्त्रों में करोड़ों पूजा के बराबर एक स्रोत को माना गया है और करोड़ों स्रोत के समान जप को माना गया है। परमार्थ साधना के चार बड़े विभाग कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और राजयोग हैं किन्तु जपयोग में इन चारों का अंतर्भाव हो जाता है, जप कई प्रकार के होते हैं जैसे ‘नित्य जप’, ‘काम्य जप’, ‘प्रदक्षिणा जप’ ‘वाचिक जप’, ‘अचल जप’, ‘चल जप’, ‘उपांशु जप’, ‘नैमित्तिक जप’, ‘भ्रमर जप’, ‘निषिद्घ जप’, ‘अखंड जप’, ‘मानस जप’, ‘अजपा जप’ और ‘प्रायश्चित जप’, इत्यादि।  

      हमारे तन, मन, व वातावरण पर मंत्र के शब्दों का गहरा प्रभाव पड़ता हैं। मंत्र शक्ति के द्वारा ही माता अनसूया ने ब्रह्मा , विष्णु, महेश को दूध पीते बच्चों में परिवर्तित कर दिया था। जैसे लोहे का बना मामूली-सा अंकुश इतने बड़े और बलवान हाथी को वश में कर लेता है, उसी तरह मंत्र में केवल देवताओं को ही नहीं, बल्कि स्वयं प्रभु को वश में कर लेने की शक्ति होती है। ‘मंत्र’ का वास्तविक अर्थ है, मन को स्थिर करने वाला अर्थात जो मन की गति को रोक सके। पूरे विश्वास के साथ मंत्र जपने से सफलता प्राप्त होती है। मंत्र में कभी शंका नहीं करनी चाहिए। मंत्र में जिसकी जैसी भावना होती है, उसको वैसी ही सिद्घि प्राप्त होती है। ‘यो यच्छद्घ:’ ‘स एवं स’ जो जैसे श्रद्घा रख रहा है वस्तुत: वह वही है अर्थात श्रद्घा ही व्यक्ति का व्यक्तित्व है। इसी श्रद्घा को इष्ट लक्ष्य में साधना की यथार्थता और उपलब्धि में जितनी अधिक गहराई के साथ, तन्मयता के साथ, नियोजित की जायेगी, मंत्र शक्ति उतनी ही सामर्थ्यवान बन जाएगी। अचेतन मन को जागृत करने की वैज्ञानिक विधि को मंत्रा जप कहते हैं। मंत्र जप से मनोबल दृढ़ होता है। आस्था में परिपक्वता आती है, बुद्घि निर्मल होती है। भावपूर्वक मंत्र को बार-बार दोहराना जप कहलाता है। मंत्र के अक्षर, मंत्र के अर्थ, जप करने की विधि को अच्छी प्रकार सीखकर उसके अनुसार जप करने से साधक की योग्यता विकसित होती है।

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      मंत्र जाप का लाभ 

      मंत्र जपने से पुराने संस्कार हटते जाते हैं। मंत्र जप से मन पवित्र होता है। दुख, चिन्ता, भय, शोक, रोग आदि निवृत्त होने लगते हैं। सुख-समृद्घि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलती हैं। मंत्रा के माध्यम से आप अपने मन की इच्छानुसार फल प्राप्त कर सकते हैं। वट वृक्ष का बीज और मंत्र, द्वितीया के चन्द्रमा की तरह छोटा दिखाई देता है। परन्तु बढ़ते-बढ़ते रंग बिखेर देता है। सारा संसार देवताओं के अधीन हैं, देवता मंत्र के अधीन हैं, मंत्र योगी के अधीन है, योगी परमात्मा के अधीन है।

      जिन मंत्रों को हम उच्चारित करते हैं तो उच्चारण करने से जो ध्वनि पैदा होती है उस ध्वनि के अन्दर एक विचित्र प्रकार की शक्ति छिपी रहती है जो बड़ी शक्तिशाली होती है। जिससे बड़े से बड़ा प्रलय व सृजन कार्य होता है। ध्वनि विशेषज्ञों ने इसको प्रमाणित किया है।

      ध्वनि को विश्व ब्रह्मïड का एक संक्षिप्त रूप कहा जाता है। वायु, जल और पृथ्वी इन तीन चीजों से ध्वनियां उत्पन्न होती है। वायु की तरंगों से प्राप्त होने वाली ध्वनि की गति प्रति सेकेंड 1088 फुट होती है। जल तरंगों से गति इससे भी तेज है जो 4900 फुट चलती है तथा पृथ्वी के माध्यम से यह और भी तीव्र हो जाती है अर्थात एक सेकेंड में 16400 फुट। सभी जीवित प्राणी ध्वनि के प्रभाव को अनुभव करते हैं।

      आप किसी व्यक्ति को गाली देते हैं, क्रोधित होकर डांटते हैं तो वह क्रोध से आगबबुला हो जाता है। उसी व्यक्ति के साथ आप मधुर वचन बोलते हैं वह प्रसन्नचित होकर गदगद हो जाता है। अपने आपको हर समय न्यौछावर करने को तैयार रहता है। यह सब चमत्कार ध्वनि का है। गायन कला के अनुसार कंठ को अमुक आरोह-अवरोहों के अनुरूप उतार-चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह होता है वह गायन है।

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      इसी प्रकार मुख के उच्चारण मंत्र को अमुक शब्द क्रमवार बार-बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार की ध्वनि प्रवाह संचारित करने से जो विशेष प्रकार की ध्वनि प्रवाह संचारित होती है वही मंत्र की भौतिक क्षमता होती है। यही ध्वनि का प्रभाव सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करता है। इसके अन्दर विद्यमान 3 ग्रन्थियों, षटचक्रों, षोडश माष्टकाडों, 24 उपत्यिकाओं तथा 84 नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र शक्ति का ध्वनि उच्चारण बहुत कार्य करता है और दिव्य शक्ति प्राप्ति हेतु मंत्र के शब्दों का उच्चारण ही बड़ा कारण है।

      सील और डॉफिन नामक जन्तु मधुर संगीत की लहरें सुनकर शिकारियों के जाल मे फंस जाते हैं। बीन की ध्वनि पर सर्प, बांसुरी की ध्वनि पर हिरण वशीभूत हो जाते हैं। हौलेण्ड के पशु पालकों ने गायों का दूध निकालते समय संगीत बजाने का क्रम चलाया और अधिक मात्रा में दूध की प्राप्ति की वहीं यूगोस्वालिया में फसल को सुविकसित करने लिए अपने खेतों पर वाद्य ध्वनि यंत्र से संगीतमय ध्वनि प्रभावित की जिसका परिणाम उत्साहवर्धक पाया गया।

      अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अमेरिकी किसान जॉर्ज स्मिथ ने मक्का पर संगीत का थोड़ा सा प्रयोग कर उनकी वृद्घि में सफलता प्राप्त की। जो मंत्र जिस देवता से सम्बन्धित होता है वह उसकी शक्ति को जागृत कर आत्मसात कर लेता है। मंत्र साधक स्वयं देवता तुल्य होकर जन-कल्याण करने लगता है।

      मंत्रा साधक को सशक्त व जागृत बनाता है। जागृत मंत्र के साधक से जो कुछ चाहता है वह उसे अवश्य प्राप्त हो जाता है। 

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