|| शबरी के राम | SHABRI KE RAM ||
शबरी के राम
शबरी माँ को मेरा प्रणाम,
जिसके हिरदै राम ही राम ।
चुभ जाये ना पग में शूल,
बिनती कंकर झाड़त धूल,
रस्ते में फैलावत फूल,
सोये,जागे,करे ना भूल ।
और न था जिसको कोई काम,
राम ही राम,राम ही राम ।
प्रतिदिन उठती बहुत सबेरे,
लाती कंद मूल,फल,बेर,
भागत आती हो ना देर,
मन मन करती राम की टेर ।
राम ही उसके जीवन धाम,
राम ही राम,राम ही राम ।
चख चख वो रखती थी देख,
पिचके,खट्टे देती फेंक,
बैठी राह निहारत टेक,
करने को प्रभु का अभिषेक ।
राम ही उसकी भोर और शाम,
राम ही राम,राम ही राम ।
रामजी आये सीता साथ,
लक्ष्मण ज्यों लागा संताप,
जूठे बेर की ये औकात,
समझ न पाये लक्ष्मण बात ।
शबरी झुक झुक करे प्रणाम,
राम ही राम, राम ही राम ।
लक्ष्मण भैया ये है प्रीत,
प्रीत नहीं जानत है रीत,
प्रीत नहीं बालू की भीत,
अमृत रस की ये परिणीति ।
ना ये भक्तिन,ना मैं राम,
राम ही राम,राम ही राम ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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