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      शरद पूर्णिमा आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      शरद पूर्णिमा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने, साथ ही चांदनी रात में खीर बनाकर रखने की परंपरा है।

      शरद पूर्णिमा तिथि 

      पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 9th अक्टूबर दिन रविवार को तड़के 3rd बजकर 41 मिनट पर हो रहा है।

      इस तिथि का समापन अगले दिन 10th अक्टूबर सोमवार को तड़के 2 बजकर 24 मिनट पर होगा।

      ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल शरद पूर्णिमा 9th अक्टूबर को है।

      शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय समय

      इस साल शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा का उदय शाम 05 बजकर 51 मिनट पर होगा।

      जिन लोगों को व्रत रखना है वे 9th अक्टूबर को ही शरद पूर्णिमा का व्रत रखेंगे और शाम के समय में चंद्रमा की पूजा करेंगे।

      शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
      • सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।
      • लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें। तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं।
      • भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।
      • तिलक करने के बाद मीठे ( सफेद या पीली मिठाई ) से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है।
      • शाम के समय चंद्रमा निकलने पर मिट्टी के 100 दीये या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीये गाय के शुद्ध घी से जलाएं।
      • इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें। फिर पूरी रात (तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो जाता है) जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।
      • अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।
      • इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।
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      शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

      इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होता है।

      इस वजह से रात के समय में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणें उसमें पड़ें। इससे वह खीर औषधीय गुणों वाला हो जाता है।

      उस खीर का सेवन करने से सेहत अच्छी होती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है।

      कोजागर पूर्णिमा 

      शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा इसलिए कहते हैं कि इस रात में माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उन लोगों के घरों में जाती हैं, जिनका घर साफ सुथरा होता है और वे उनके स्वागत के लिए तैयार रहते हैं।

      धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता लक्ष्मी जानना चाहती हैं कि उनके स्वागत के लिए इस समय कौन जाग रहा है, इस वजह से शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागर पूर्णिमा है।

      शरद पूर्णिमा की कथा

      पूर्णिमा के व्रत का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

      मां लक्ष्मी और श्रीहरि की इसी कृपा को प्राप्त करने के लिए एक साहूकार की दोनों बेटियां हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थीं।

      इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से और पूरा व्रत करती थी।

      वहीं छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखा करती थी।

      विवाह योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया।

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      बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। संतान का जन्म छोटी बेटी के घर भी हुआ लेकिन उसकी संतान पैदा होते ही दम तोड़ देती थी।

      दो-तीन बार ऐसा होने पर उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी व्यथा कही और धार्मिक उपाय पूछा।

      उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हारा व्रत फलित नहीं होता और तुम्हे अधूरे व्रत का दोष लगता है।

      ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निर्णय लिया।

      लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया।

      जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई।

      इस पर उसने अपने बेटे शव को एक पीढ़े पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढक दिया कि किसी को पता न चले।

      फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया।

      जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा।

      इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने लगी कि क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो?

      इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया, यह बच्चा मरा हुआ तो पहले से ही था।

      दीदी, तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण तो यह जीवित हो गया है।

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      पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत और तप करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो।

      अब मैं भी तुम्हारी ही तरह व्रत और पूजन करूंगी।

      इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि पूर्वक किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया।

      जिस प्रकार मां लक्ष्मी और श्रीहरि ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।

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