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      || सोन चिरैया ||

      माँ मैं तेरी सोन चिरैया प्रतिदिन घर में चहकूँगी,
      बेला और चमेली जैसे आँगन में मैं महकूँगी ।


      पापा काम से आयेंगे तो ठंडा पानी लाऊँगी,
      पहले भैया को दूँगी मैं पीछे खाना खाऊँगी ।


      घर पर कोई संकट आया तो मैं लपट सी लहकूँगी,
      माँ मैं तेरी सोन चिरैया प्रतिदिन घर में चहकूँगी ।


      ना ओछे कपड़े पहनूँगी,ना मैं नाक कटाऊँगी,
      शाला से जैसे छूटूंगी, सीधी घर में आऊँगी ।


      किसी मनचले के बहकाने पर मैं कभी न बहकूँगी,
      माँ मैं तेरी सोन चिरैया प्रतिदिन घर में चहकूँगी ।


      प्रेम भरी मीठी बोली से सारे दुख मैं हर लूँगी,
      तुम्हें हुआ यदि जाड़ा, खाँसी घर के काम में कर लूँगी ।


      भजन आरती गाऊँगी तो कोयल जैसी कुहकूँगी,
      माँ मैं तेरी सोन चिरैया प्रतिदिन घर में चहकूँगी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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