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      भगवान कार्तिक का ऐसा रहस्यमयी भंडार | कहानी एक ऐसे रहस्यमयी भंडार की जिसके दर्शन हर किसी के बस की बात नहीं | 2YoDo विशेष

      यह तो हम सभी को पता है कि भगवान कार्तिकेय,भगवान शंकर और देवी पार्वती के पुत्र हैं। इनके जन्म की कथा बेहद रोचक और प्रभु महिमा से पूर्ण है। दरअसल, तारकासुर नामक राक्षस ने घोर शिव तपस्या करके अपनी शक्ति बढ़ा ली थी।

      साथ ही उसने भोले भंडारी से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका वध केवल शिव पुत्र ही कर सकता है। इतना ही नहीं उसने अपनी शक्ति बढ़ने के बाद तीनों लोकों में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया और देवताओं को प्रताड़ित करने लगा।

      इससे परेशान होकर सभी देवगण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। तब विष्णु भगवान ने उन्हें तारकासुर के वध का रहस्य बताया।

      ऐसे में स्कंद पुराण के अनुसार, सभी देवगण जब कैलाश पर्वत पहुंचे तो उन्हें पता चला कि विवाह के बाद भगवान शिव और माता पार्वती देवदारु वन में एकांतवास के लिए गए हुए हैं।

      फ़िर क्या था सभी देव देवदारु वन पहुंच गए। लेकिन शिव-पार्वती की गुफा में जाने का साहस कोई नहीं कर पा रहा था। फ़िर निर्णय यह हुआ कि अग्निदेव श्वेत कबूतर का रूप धरकर गुफा में जाएंगे।

      अग्निदेव श्वेत कबूतर का रूप धारण करके गुफ़ा के अंदर गए।  उनके अंदर जाने की आहट के कारण जैसे ही शिवजी का ध्यान टूटा कबूतर ने जमीन पर गिरे वीर्य का पान किया और उड़ गए।

      लेकिन वह इस वीर्य का ताप सहन नहीं कर पा रहे थे, इसलिए देवकल्याण के लिए उन्होंने इसे देवी गंगा को सौंप दिया।

      लेकिन मान्यताओं के अनुसार देवी गंगा भी इसके ताप को सहन नहीं कर पा रहीं थी इसलिए उन्होंने इसे श्रवण वन में लाकर स्थापित कर दिया।

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      इसके बाद यह गंगा की लहरों के कारण 6 भागों में विभाजित हो गया। जैसे ही इन 6 भागों को देवी गंगा ने श्रवण वन में धरती को सौंपा, उन 6 भागों ने 6 दिव्य बालकों का रूप ले लिया और जो बाद में 6 सिर वाले एक बालक में बदल गए।

      तो यह तो कहानी हुई भगवान कार्तिकेय की जन्म की, लेकिन आज हम आप सभी को भगवान कार्तिकेय (कार्तिक) से जुड़ी एक रोचक कहानी से अवगत कराने जा रहें।

      जी हां बता दें कि भगवान कार्तिक स्वामी की तपस्थली क्रौंच पर्वत के आंचल तथा प्रकृति की अत्यंत सुरम्य वादियों में बसे उसनतोली बुग्याल के निकट बीहड़ चट्टान पर एक गुफा में भगवान कार्तिक स्वामी का प्राचीन भंडार है। हालांकि उसनतोली-गणेशनगर पैदल मार्ग है।

      जिसके ऊपरी हिस्से में भंडार स्थित है। जिसकी वज़ह से अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित भंडार का दर्शन करना दुर्लभ है।

      ऐसी मान्यताएं है कि इस भंडार से एक मार्ग कुबेर पर्वत को जाता है। कहा जाता है कि काफ़ी समय पूर्व इस भंडार के दर्शन भगवान कार्तिक स्वामी के दो परम उपासक ही कर पाए थे।

      ऐसी मान्यता है कि बीहड़ चट्टानों के बीच इस भंडार में भगवान कार्तिक स्वामी के अनमोल बर्तन हैं। वही भगवान कार्तिक स्वामी की तपस्थली क्रौंच पर्वत तीर्थ अनेक विशेषताओं से भरा है।

      ऐसा माना जाता है कि इस तीर्थ के चारों तरफ 360 गुफाओं के साथ 360 जलकुंड भी हैं। इन गुफाओं में आज भी अदृश्य रुप में साधक जगत कल्याण के लिए साधना करते हैं।

      क्रौंच पर्वत तीर्थ से लगभग तीन किमी दूर प्रकृति की गोद में बसा उसनतोली बुग्याल के पास बीहड़ चट्टान के मध्य भगवान कार्तिक स्वामी के प्राचीन भंडार की अपनी विशिष्ट पहचान है।

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      मान्यता के अनुसार इस भंडार में भगवान कार्तिक स्वामी का अमूल्य भंडार है। इसलिए इस जगह का नाम “भंडार” पड़ा।

      शिव पुराण में केदारखंड के कुमार खंड में वर्णित है कि एक बार गणेश और कार्तिकेय में पहले विवाह को लेकर मतभेद हो गया था।

      जब यह बात शिव-पार्वती तक पहुंची तो दोनों ने एक युक्ति निकाली की, जो सर्वप्रथम विश्व परिक्रमा कर आएगा उसका विवाह पहले कर दिया जाएगा।

      माता पिता की आज्ञा लेकर भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर विश्व परिक्रमा के लिए चल दिए तथा गणेश ने माता-पिता की परिक्रमा कर कहा कि माता-पिता को विश्व में सबसे बड़ा माना गया है।

      इसलिए मैंने आप दोनों की परिक्रमा कर ली है। अब आप मेरा विवाह कर दीजिए।

      मान्यताओ के मुताबिक इसके बाद भगवान गणेश का विवाह विश्वजीत की पुत्रियों ऋद्धि व सिद्धी से कर दिया जाता है।

      जब भगवान कार्तिकेय विश्व परिक्रमा करके वापस लौट रहे होते हैं तो रास्ते में नारद द्वारा उनको बताया जाता है कि आपके माता-पिता ने भगवान गणेश की शादी आपसे पहले कर दी है।

      जिससे गुस्साए कार्तिकेय ने अपने शरीर का मांस काटकर माता-पिता को सौंपा और मात्र निर्वाण रूप (हड्डियों का ढांचा) लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुंचकर तपस्या में लीन हो गए।

      प्रचलित किवदंती के मुताबिक कहा जाता है कि आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व उसनतोली बुग्याल में एक पशुपालक रहता था।

      वह हमेशा भगवान कार्तिक स्वामी की भक्ति में समर्पित रहता था। एक दिन भगवान कार्तिक स्वामी उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें सपने में प्राचीन भंडार के दर्शन करवाए।

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      इतना ही नहीं एक दूसरी मान्यता भी है कि युगों पूर्व एक नेपाली साधक अपनी तपस्या के बल पर भंडार के दर्शन कर चुका था। इनके अलावा आज तक तीसरे किसी व्यक्ति ने इस भंडार के दर्शन नहीं किए है।

      इस पर्वत के आस-पड़ोस रहने वाले स्थानीय मतावलम्बी के अनुसार जब भगवान कार्तिक स्वामी की देवता पूजा करते थे तो इस भंडार से तांबे के बर्तन निकाल कर अनेक पकवान बनाये जाते थे।

      पकवान बनाने के बाद पुनः बर्तनों को भंडार में रखा जाता था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस प्राचीन भंडार में असंख्य धातुओं का भंडार है, जिसका अनुमान आज तक नहीं लगाया जा सका है। 

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