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      || सुर की रानी ||

      सुर की रानी

      सुरों की कहानी तो सदियों पुरानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      आवाज और सुर चलें ऐसे लय में,
      जैसे हवा थम गई हो प्रलय में ।
      है ये सच्चाई बहुत जानी मानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      लता को सुनें जब भी कलियाँ चमन की,
      सुलग जायें सीने में अग्नि लगन की ।
      लगे नाचने मोरनी बन दीवानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      सुने गीत परदेस में जब लता के,
      यादे-वतन से भरी पल में आँखें ।
      उठी देश की सारी बातें सुहानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      कुर्बानी के गीत कुछ ऐसे गाये,
      मस्तक जवानों ने खुश हो नवाये ।
      सुना और आँखों में भर लाये पानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      भरा प्रेम भक्ति का ऐसा भजन में,
      बची खोट ना आत्मा की लगन में।
      भजन सुन बने चोर डाकू भी ज्ञानी,
      लता जैसी कोई नहीं सुर की रानी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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