तालाब
हर गांव नगर में एक समय एक अवश्य था तालाब,
नगर में जलपूर्ति का जिम्मा जो ढोता था तालाब,
समय बीतता गया न जाने हुए कहां गायब तालाब,
मानव की इस मूर्खता पर मन-मन रोता था तालाब ।
मिट्टी से पूर दिये सबसे ऊँची-ऊँची बिल्डिंग तानी,
विलुप्तता का दर्द लिये, सलीब ज्यूँ ढोता था तालाब ।
बूँद-बूँद पानी को तरसे, आई याद तालाब की,
मानव मन पर उलट पलट स्मृति संजोता था तालाब ।
कई मुंदे तालाब को अब पुनः खोद रही सरकार,
योजना है हो उसी जगह,जहाँ पर होता था तालाब ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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