ठंडा मीठा पानी
प्यास बुझाता है जन-जन की ठंडा-ठंडा मीठा पानी,
समझ न पायें कीमत जल की तो ये है अपनी नादानी ।
बता गये थे बड़े सयाने,पानी के बिन है सब सून,
पानी बिन न पकता खाना, पक सकता बिन मिर्ची नून ।
मानव हो या पशु शरीर में आधे से भी अधिक है पानी,
प्यास बुझाता है जन-जन की ठंडा-ठंडा मीठा पानी ।
पानी से ही संभव बाग,बगीचे,लता,घास और फूल,
बिन पानी है नीरा मरुस्थल,तपन आग और धूल ही धूल ।
पानी से ही भोर सुनहरी और संध्या भी लगे सुहानी,
प्यास बुझाता है जन-जन की ठंडा-ठंडा मीठा पानी ।
पानी से है हरियाली जो किरणों से मिल बने हवा,
अन्न,फूल, फल,लकड़ी,कोयला,जड़ी-बूटियाँ और दवा ।
प्राण वायु न मिली तो जीवन रह जाये बस निरी कहानी,
प्यास बुझाता है जन-जन की ठंडा-ठंडा मीठा पानी ।
पानी से ही बने मेघ,इंद्रधनुष सतरंगा अंबर पर,
नदियां, नाले झरने,कुएँ तालाब व सागर सर-सर-सर ।
बूंद बूंद जल की है कीमत करो न जल से तुम मनमानी,
प्यास बुझाता है जन-जन की ठंडा-ठंडा मीठा पानी ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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