ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है,
या तू बेटी का बाप नहीं या झूठी तेरी मुहब्बत है ।
बेटी के कोमल बचपन को जिसकी ममता ने सींचा हो,
मुस्कान रहे दिखती जिसकी,हर दुख साँसों से सींचा हो ।
दूजे से कैसे कह सकता ले जा अब मेरी इजाजत है,
ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है ।
आँगन की चिड़ियों में मिलकर जो चिड़ियों जैसी चहकी हो,
तुलसी जैसी जो पूज्य रही,कलियों जैसी वो महकी हो ।
वो जो भी करती है दिन भर लगता वो मुझे इबादत है,
ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है ।
बाहर से जैसे घर आओ मन जिसे देखना चाहे है,
जब तक वो नजर नहीं आये पुतली के रोम कराहे हैं ।
वो मेरे घर की पूजा है, वो मेरे दिल की राहत है,
ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है ।
बाबुल के घर की ज्योति क्यों दूजे के घर का नूर बने,
क्यों ऐसी रस्म बनाई है क्यों हैं ऐसे दस्तूर बने ।
ये नाइंसाफी क्या तेरी बाबुल पर नहीं निहायत है,
ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है ।
तेरा भी कलेजा फट जाये, जैसे बाबुल का फटता है,
आ जिगर तेरा भी कट जाये, जैसे बाबुल का कटता है ।
इक पल को तू बाबुल बन जा फिर देख मेरी क्या हालत है,
ऊपर वाले इक बाबुल को तुझसे ये बड़ी शिकायत है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “