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      || उसका क्या कसूर है | USKA KYA KASOOR HAI ||

      उसका क्या कसूर है

      वैश्या है गर तो इसमें उसका क्या कसूर है,
      क्यूं सुकूने-जिंदगी उससे ही सदा दूर है ।

      उसके होने में ही उसकी झांकती मजबूरियाँ,
      इंसानियत से दूर बहुत दूर तक तलक दूरियाँ ।

      उसमें भी कसूर कहीं आपका जरूर है,
      वैश्या है गर वो इसमें उसका क्या कसूर है ।

      आपकी हैवानगी का खून उसमें बह रहा,
      आपकी दरिंदगी को रोते रोते कह रहा ।

      उसकी बेबसी क्यों सब्र करने को मजबूर है,
      वैश्या है वो तो इसमें उसका क्या कसूर है ।

      चाहतें उसमें भी रहती आप ही की तरह,
      आशियां भी चाहती वो आप ही की तरह ।
      आपसा ही हक उसे भी चाहिये जरूर है,
      वैश्या है गर वो उसमें उसका क्या कसूर है ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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