वीरांगना लक्ष्मी बाई की याद में
सभी मशाल रैलियाँ निकालने वालों,
समाधि पर उसकी दीप ही जलाया होता ।
ढिंढोरा पीट कर मना रहे बलिदान दिवस,
कभी उस याद पर इक फूल चढ़ाया होता ।
देवी साहस की बलिदान की प्रतिमूर्ति,
असूल उसका जिंदगी में अपनाया होता ।
वतन की आन थी,स्वाभिमान की जननी,
कभी उसके सिद्धान्तों पे दिल आया होता ।
मिट गई खुद मगर आन नहीं मिटने दी,
आदर्शों पर उसके शीश झुकाया होता ।
उतर आई थी उस पर ज्यों मैदान में दुर्गा,
वो दुर्गा माँ स्वरूप याद में लाया होता ।
देकर जान भी लेकर रहेंगे आजादी,
कभी इरादा पक्का इतना बनाया होता ।
मुंदी आँखों से उसकी रौशनी महसूस करो,
सहारा क्यों मशाल का तुम्हें भाया होता ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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