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      || विश्व योग दिवस 2021 : योग का संपूर्ण इतिहास ||

      नमस्कार मित्रों,

      योग के प्रचलन के इतिहास को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं पहला हिन्दू परंपरा से प्राप्त इतिहास और दूसरा शोध पर आधारित इतिहास। योग का इतिहास बहुत ही वृहद है हमनें इसे यहां पर संक्षिप्त रूप से लिखा है। कहते हैं कि भारत में योग लगभग 15 हजार वर्षों से निरंतर प्रचलित है। सभ्यताओं के युग से पूर्व ही ऋषि मुनियों ने पशु-पक्षियों आदि को देखकर योग के आसन विकसित किए और फिर इस तरह योग में कई आयाम जुड़ते गए।

      हिन्दू परंपरा पर आधारित योग का इतिहास

      • योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, इसके बाद विवस्वान सूर्य, रुद्रादि को दिया। बाद में यह दो शाखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग।
      • ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, कपिल, आसुरि, वोढु, पंच्चशिख नारद और शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञानयोग, अध्यात्मयोग और सांख्ययोग नाम से प्रसिद्ध हुआ।
      • दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने वैवस्वत मनु को, मनु ने ऋषभदेव और इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। फिर भगवान श्रीराम को ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने यह ज्ञान दिया।
      • परंपरा से प्राप्त यह ज्ञान महर्षि सांदीपनि, वेदव्यास, गर्गमुनि, घोर अंगिरस, नेमिनाथ आदि गुरुओं ने भगवान श्रीकृष्ण को दिया और श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया।
      • योग के इसी ज्ञान को बाद में भगवान महावीर स्वामी ने पंच महाव्रत और गौतम बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग नाम से विस्तार दिया।
      • परंपरा से ही यह ज्ञान महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र के माध्यम से और आदि शंकराचार्य ने वेदांत के माध्यम से इसका प्रचार-प्रसार किया।
      • इसी ज्ञान को बाद में 84 नाथों की परंपरा ने हठयोग के नाम से आगे बढ़ाया जिनके प्रमुख योगी थे गुरु मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गोरखनाथ।
      • शैव परंपरा के अनुसार योग का प्रारंभ आदिदेव शिवजी से होता है। शिवजी ने योग की पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी।
      • शिवजी ने दूसरी शिक्षा केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले 7 शिष्यों को दी थी, जिन्हें सप्तऋषि कहा जाता है।
      • भगवान शिव की योग परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष शिव, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भारद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरीष मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया।
      • भगवान शिव के बाद योग के सबसे बड़े गुरु गुरु दत्तात्रेय थे। गुरु दत्तात्रेय की योग परंपरा में ही आगे चलकर आदि शंकराचार्य और गोरखनाथ की परंपरा का प्रारंभ होता है।
      • गुरु गोरखनाथ की 84 सिद्धों और नवनाथ की परंपरा में मध्यकाल में कई महान संत हुए जिन्होंने योग को आगे बढ़ाया। संत गोगादेवजी, रामसापीर, संत ज्ञानेश्‍वर, रविदासजी महाराज से लेकर परमहंस योगानंद, रमण महर्षि और स्वामी विवेकानंद तक हजारों योगी हुए हैं जिन्होंने योग के विकास में योगदान दिया है।
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      शोध पर आधारित योग का इतिहास

      • श्रीराम के काल में योग : नए शोध के अनुसार 5114 ईसा पूर्व प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। उस वक्त महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र और वाल्मीकिजी लोगों को योग की शिक्षा देते थे।
      • श्रीकृष्‍ण के काल में योग : नए शोधानुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। उन्होंने अर्जुन को योग की शिक्षा दी थी।
      • सिंधु घाटी सभ्यता काल में योग : योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ईस्वी पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के समय की मुहरों और मूर्तियों में मिलता है। इसके अलावा भारत की प्राचीन गुफाएं, मंदिरों और स्मारकों पर योग आसनों के चिह्न आज भी खुदे हुए हैं।
      • ऋग्वेद काल में योग : संसार की प्रथम पुस्तक ‘ऋग्वेद’ में यौगिक क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। हजारों वर्षों की वाचिक परंपरा के बाद 1500 ईसा पूर्व वेद लिखे गए।
      • महावीर स्वामी के काल में योग : भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईस्वी पूर्व हुआ था। उन्होंने योग के आधार पर ही पंच महाव्रत का सिद्धांत प्रतिपादित किया था।
      • बौद्ध काल में योग : भगवान बुद्ध का जन्म 483 ईस्वी पूर्व हुआ था। उन्होंने योग के आधार पर ही आष्टांगिक मार्ग का निर्माण किया था।
      • आदि शंकराचार्य के काल में योग : मठ परंपरा के अनुसार आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व और मृत्यु 474 ईसा पूर्व हुई थी। इतिहासकारों के अनुसार 788 ईस्वी में जन्म और 820 ईस्वी में मृत्यु हुई थी। उनसे योग की एक नई परंपरा की शुरुआत होती है।
      • महर्षि पतंजलि के काल में योग : महर्षि पतंजलि ने योग का प्रामाणिक ग्रंथ ‘योगसूत्र’ को 200 ईस्वी पूर्व लिखा था। योगसूत्र पर बाद के योग शिक्षकों ने कई भाष्य लिखे हैं।
      • हिन्दू संन्यासियों के 13 अखाड़ों में योग : सन् 660 ईस्वी में सर्वप्रथम आवाहन अखाड़ा की स्थापना हुई। सन्‌ 760 में अटल अखाड़ा, सन्‌ 862 में महानिर्वाणी अखाड़ा, सन्‌ 969 में आनंद अखाड़ा, सन्‌ 1017 में निरंजनी अखाड़ा और अंत में सन्‌ 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना का उल्लेख मिलता है।
      • गुरु गोरखनाथ के काल में योग : पतंजलि के योगसूत्र के बाद गुरु गोरखनाथ ने सबसे प्रचलित ‘हठयोग प्रदीपिका’ नामक ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ की प्राप्त सबसे प्राचीन पांडुलिपि 15वीं सदी की है।
      • मध्यकाल में योग : गुरु गोरखनाथ की 84 सिद्धों और नवनाथ की परंपरा में मध्यकाल में कई महान संत हुए जिन्होंने योग को आगे बढ़ाया। संत गोगादेवजी, रामसापीर, संत ज्ञानेश्‍वर, रविदासजी महाराज से लेकर परमहंस योगानंद, रमण महर्षि और विवेकानंद तक हजारों योगी हुए हैं जिन्होंने योग के विकास में योगदान दिया है।
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      21 जून को ही अन्तर्राष्ट्रीय योग-पर्व क्यों?

      २१ जून को सूर्य, कर्क राशि में प्रवेश के साथ ही, अपनी उत्तर यात्रा को विराम देकर दक्षिणोन्मुखी हो जाता है अर्थात् इसे काल गणना की भाषा में “दक्षिणायन” कहते हैं। उत्तरायण अथवा मकर संक्रांति के बाद यह वर्ष की दूसरी बड़ी संक्रांति होती है। इस संक्रांति के साथ ही वर्षा ऋतु और सौर श्रावण शुरू हो जाता है। दक्षिणायन में रात बड़ी और दिन छोटा होता है। जैसे रात्रि विश्राम के लिए है। जिससे व्यक्ति अपनी थकान दूर करता है और सुबह उठ कर शक्ति और ताजगी से पूरीत होता है। वैसे ही दक्षिणायन की यात्रा वर्षा ऋतु के मुख्य पर्व श्रावण से प्रारंभ हो जाती है यह समय ही स्वाध्याय और बड़े-बड़े यज्ञ आदि के साथ चौमासा प्रारम्भ करने का है। इस समय विद्यार्थी अपनी कक्षाओं में प्रवेश करते हैं। शिक्षा संस्थानों में प्रवेश प्रारम्भ हो जाता है। अर्थात् ये शक्ति संचय का काल है। अर्थात दक्षिणायन में शक्ति संचय और उत्तरायण में उस शक्ति का प्रयोग। जैसे रात्रि में शक्ति संचय और दिन में परिश्रम करके उस शक्ति का उपयोग किया जाता है। ऐसे ही वर्षा ऋतु में उपजे अवकाश को योग के रुप में उपयोग करना चाहिये।

      लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.

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