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      विश्वकर्मा जयंती आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती या विश्वकर्मा पूजा भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जिन्हें दुनिया का डिजाइनर माना जाता है। उन्होंने द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जिस पर श्रीकृष्ण का शासन था। भगवान विश्वकर्मा ने भी देवताओं के लिए कई हथियार बनाए।

      विश्वकर्मा दिवस प्रत्येक वर्ष भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाता है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 16 या 17 सितंबर को मनाया जाता है। दिन की गणना बिसुधा सिद्धांत के आधार पर की जाती है। पूर्वी भारतीय राज्यों जैसे त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और झारखंड में विश्वकर्मा दिवस को विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पूरे देश के शिल्पकारों और कारीगरों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह त्योहार बिहार और कुछ उत्तरी राज्यों में दिवाली के बाद मनाया जाता है।

      विश्वकर्मा जयंती के दौरान अनुष्ठान

      त्योहार के दिन कार्यालयों, कारखानों और कार्यस्थलों में विशेष पूजा और प्रार्थना की जाएगी। ऐसे स्थानों को फूलों से खूबसूरती से सजाया जाएगा।

      भक्तों द्वारा भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। उनकी मूर्ति सजावटी पंडालों में स्थित है।

      इस दिन श्रमिकों द्वारा औजारों की पूजा भी की जाती है। पूरा माहौल मनोरंजक और उल्लासपूर्ण है।

      त्योहार के दिन, एक स्वादिष्ट दावत तैयार की जा रही है और श्रमिकों और मालिकों द्वारा एक साथ खाया जाता है।

      विश्वकर्मा दिवस का महत्व

      विश्वकर्मा दिवस हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अनमोल दिन है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यह दिन भगवान विश्वकर्मा का सम्मान करता है। ऋग्वेद में उनके योगदान की व्यापकता का विवरण दिया गया है। कार्यकर्ता समुदाय इस त्योहार को मस्ती के साथ मनाते हैं। यह अपने संबंधित क्षेत्रों में सफलता के लिए भगवान की पूजा करता है।

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      विश्‍वकर्मा पूजा की कथा

      सूतजी बोले, प्राचीन समय की बात है, मुनि विश्वमित्र के बुलावे पर मुनि और संन्‍यासी लोग एक स्थान पर एकत्र हुए सभा करने के लिए। सभा में, मुनि विश्वमित्र ने सभी को संबोधित किया। मुनि विश्वमित्र ने कहा कि, हे मुनियों आश्रमों में दुष्ट राक्षस यज्ञ करने वाले हमारे लोगों को अपना भोजन बना लेते हैं। यज्ञों को नष्ट कर देते हैं। जिसके कारण हमारे पूजा-पाठ, ध्यान आदि में परेशानी हो रही है। इसलिए अब हमें तत्काल् उनके कुकृत्यों से बचने का कोई उपाय अवश्य करना चाहिए।

      मुनि विश्वमित्र की बातों को सुनकर वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि एक बार पहले भी ऋषि-मुनियों पर इस प्रकार का संकट आया था। उस समय हम् सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गए थे। ब्रह्माजी ने ऋषि मुनियों को संकट से छुटकारा पाने के लिए उपाय बताया था। ऋषि लोगों ने ध्यानपूर्वक वशिष्ठ मुनि की बातों को सुना और कहने लगे कि वशिष्ठ मुनि ने ठीक ही कहा है, हमें ब्रह्मदेव की ही शरण में जाना जाना चाहिए।

      ऐसा सुन सब ऋषि-मुनियों ने स्वर्ग को प्रस्थान किया। मुनियों के इस कष्ट को सुनकर ब्रह्माजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। ब्रह्माजी कहने लगे कि, हे मुनियों राक्षसों से तो स्वर्ग में रहने वाले देवता को भी भय लगता रहता है। फिर मनुष्यों का तो कहना ही क्या जो बुढ़ापे और मृत्यु के दुखों में लिप्त रहते हैं। उन राक्षसों को नष्ट करने में श्री विश्वकर्मा समर्थ हैं, आप लोग श्रीविश्वकर्मा के शरण में जाएं।

      इस समय पृथ्वी पर अग्नि देवता के पुत्र मुनि अगिंरा यज्ञों में श्रेष्ठ पुरोहित हैं और जो श्री विश्वकर्मा के भक्त हैं। वही आपके दुखों को दूर कर सकते हैं, इसलिए हे मुनियों, आप उन्हीं के पास जाएं। सूतजी बोले, ब्रह्माजी के कथन के अनुसार मुनि लोग अगिंरा ऋषि के पास गए। मुनियों की बातों को सुनकर अगिंरा ऋषि ने कहा, हे मुनियों आप लोग क्यों व्यर्थ में इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे हैं। दुखों दूर करने में विश्वकर्मा भगवान के अतिरिक्त और कोई भी समर्थ नहीं है।

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      अमावस्या के दिन, आप लोग अपने साधारण कर्मों को रोककर भक्ति पूर्वक श्रीविश्वकर्मा कथा सुनें और उनकी उपासना करें। आपके सारे कष्टों को विश्वकर्मा भगवान अवश्य दूर करेंगे। महर्षि अगिंरा के बातों को सुनकर सभी लोग अपने-अपने आश्रमों को चले गए। तत्प्रश्चात् अमावस्या के दिन, मुनियों ने यज्ञ किया। यज्ञ में विश्वकर्मा भगवान का पूजन किया। श्रीविश्वकर्मा कथा को सुना। जिसका परिणाम यह हुआ कि सारे राक्षस भस्म हो गए। यज्ञ विघ्नों से रहित हो गया, उनके सारे कष्ट दूर हो गए। जो मनुष्य भक्ति-भाव से विश्वकर्मा भगवान की पूजा करता है, वह सुखों को प्राप्त करता हुआ संसार में बड़े पद को प्राप्त करता है।

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