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      || वाह री मैया न्याय तेरा ||

      भैया तो खेल बस खेले,घर की सफाई मेरे नाम,
      वाह री मैया न्याय तेरा मैं देखा करती सुबह शाम ।
      कभी -कभी तो आँख बचाकर दूध मलाई देती हो,
      दाल-भात बस मेरे आगे धीरे से सरका देती हो ।
      देख देख अभ्यस्त हो गई हूँ मैया ये तेरा काम,
      वाह री मैया न्याय तेरा मैं देखा करती सुबह शाम ।
      भैया के क्या गाल हैं मीठे हर पल चुम्मी देती हो,
      मैं जो गाल करूँ आगे तो बस थप्पड़ जड़ देती हो ।
      मुझपे प्रेम जताया तो क्या रूठ जायेंगे सीताराम,
      वाह री मैया न्याय तेरा मैं देखा करती सुबह शाम ।
      सोता भी है भैया तो तुम आँचल में सिमटा लेती,
      मैंने देख लिया तो मैया झट नजरें पलटा लेती ।
      ऐसा कर के मिल जाता है मैया क्या तुमको आराम,
      वाह री मैया न्याय तेरा मैं देखा करती सुबह शाम ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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