More
    36.7 C
    Delhi
    Sunday, May 5, 2024
    More

      स्कंद षष्ठी या बलदेव षष्ठी आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      स्कंद षष्ठी हिन्दू धर्म एक महत्वूपर्ण दिन माना जाता है, विशेषकर तमिल हिन्दूओं में। भगवान स्कंद को मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रमण्डय के नाम से जाना जाता है। स्कंद भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र है और गणेश के बड़े भाई है। स्कंद षष्ठी का दिन भगवान स्कंद व कार्तिकेय को पूर्णतयः समर्पित है। स्कंद षष्ठी को कांड षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

      स्कंद षष्ठी का महत्व

      स्कंद षष्ठी व्रत करने का विशेष महत्व है। इस व्रत को दक्षिण भारत में प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। यहां पर भगवान कार्तिकेय को कुमार, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम जैसे कई नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि आज के दिन विधि-विधान से भगवान कार्तिकेय की पूजा करने के साथ व्रत रखने से व्यक्ति को सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही संतान को हर तरह की परेशामी से छुटकारा मिलता है और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।

      स्कंद षष्ठी तिथि

      भाद्रपद, शुक्ल षष्ठी, गुरुवार, 1st सितंबर 2022

      • स्कंद षष्ठी प्रारंभ : 1st सितंबर दोपहर 02:49 बजे
      • स्कंद षष्ठी समाप्त : 2nd सितंबर दोपहर 01:51 बजे

      स्कंद षष्ठी हिन्दू धर्म एक महत्वूपर्ण दिन माना जाता है, विशेषकर तमिल हिन्दूओं में। भगवान स्कंद को मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रमण्डय के नाम से जाना जाता है। स्कंद भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र है और गणेश के बड़े भाई है। स्कंद षष्ठी का दिन भगवान स्कंद व कार्तिकेय को पूर्णतयः समर्पित है। स्कंद षष्ठी को कांड षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

      ALSO READ  विजयदशमी आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      जब पंचमी तिथि समाप्त होती है या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है तो पंचमी और षष्ठी दोनों संयुग्मित होती हैं और इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रतम के लिए चुना जाता है। इस नियम का उल्लेख धर्मसिंधु और निर्नयसिंधु में किया गया है। तमिलनाडु के मुरुगन मंदिरों में एक ही नियम का पालन किया जाता हैं और षष्ठी तिथि से एक दिन पहले सूर्यसंहारम दिवस मनाया जाता है यदि पिछले दिन षष्ठी तिथि को पंचमी तिथि के साथ जोड़ा जाता है।

      यद्यपि सभी षष्ठी भगवान मुरुगन को समर्पित हैं, लेकिन चंद्र मास कार्तिका के दौरान शुक्ल पक्ष की षष्ठी सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्त छह दिनों का उपवास रखते हैं जो सूर्यसंहारम के दिन चलता है। सूर्यसंहारम के अगले दिन को तिरु कल्याणम के नाम से जाना जाता है।

      स्कंद षष्ठी की कथा

      राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं थी। तब शिव जी तपस्या में लीन हो गए। लेकिन उनके लीन होने से सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए तारकासुर ने देव लोक में आतंक मचा दिया और देवताओं को पराजित कर चारों तरफ भय का वातावरण बना दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे हल पूछा। ब्रह्माजी ने कहा कि शिव पुत्र के द्वारा ही तारकासुर का अंत होगा। तब देवता भगवान शिव को पूरी बात बताई। तब भगवान शंकर पार्वती की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे शादी करते हैं। उसके बाद भगवान शिव और पार्वती की संतान हुई। उसका नाम कार्तिकेय रखा गया। जैसा कि ब्रह्मा जी ने बताया था कि कार्तिकेय तारकासुर का वध करेंगे वैसा ही हुआ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिकेय भगवान का जन्म षष्ठी तिथि को हुआ था, इसलिए भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा की पूजा की जाती है।

      ALSO READ  2023 की पहली मासिक शिवरात्रि आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,784FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles