हमीरपुर के दिनेश सिंह ने मख्तार अंसारी को सुनाई थी पहली बार सजा। मख्तार अंसारी मृत्यु के बाद उत्तर प्रदेश के धरती से एक और माफिया का अंत हो गया। अंसारी पर कई अपराधिक मामले दर्ज थे, लेकिन उसको कोई सजा नहीं मिली थी। इससे लोगों के मन में उसके प्रति खौफ बना रहता था।
शुकवार को कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी की हदय गति रुक जाने के कारण मौत हो गई और इसके साथ ही एक और माफिया का उत्तर प्रदेश की धरती से अंत हो गया।
मुख्तार के ऊपर कहने को तो कई अपराधिक मामले दर्ज थे लेकिन उसको किसी भी मामले सजा नही हुई थी और उसका खौफ आम जनता के साथ जजो में भी था जिसके कारण कोई भी जज मुख्तार को सजा सुनाने से डरता था।
जब मुख्तार का मामला तत्कालीन समय मे लखनऊ उच्च न्यायालय के जज दिनेश सिंह की बेंच मे पहुंचा तो उसने दिनेश सिंह को भी खौफ दिखाने की कोशिश की और सोचा कि जिस तरह जनता में उसका खौफ है उसी तरह जज दिनेश सिंह भी उसका खौफ मानेेगें लेकिन दिनेश ने निडरता के साथ अपने कर्तव्य का पालन किया, 22 सितंबर 2022 को, 2003 में धमकी देने के मामले में उसने अंसारी को सात वर्ष की सजा सुनाई।
आपको बता दें दिनेश सिंह मूल रूप से हमीरपुर ज़िले के मौदहा क्षेत्र के टिकरी गांव के निवासी है और वह प्रयागराज उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में न्यायाधीश रहे हैं और वर्तमान समय में केरल राज्य के उच्च न्यायालय में जज है और निडर व निष्पक्ष होकर अपने न्यायिक फैसले सुना रहे हैं।
बाद में अंसारी ने जेल में विशेष सुविधा के लिए अर्जी दी, लेकिन उसे नहीं मिली। दिनेश सिंह ने उसे एक अपराधी के रूप में माना और उसके अधिकारों को खारिज किया।
रामू मल्लाह जोकि मुख्तार अंसारी का नजदीकी माना जाता हैं उसकी जमानत भी यह कह कर ख़ारिज कर दी थी कि रामू के जेल के बाहर रहने की वजह से गवाहों व अन्य लोगों की जान को खतरा है इसलिए रामू मल्लाह को ज़मानत नही मिल सकती हैं।
इसी बीच, दिनेश सिंह के बेटे शांतनु की शादी 11th मार्च 2024 को लखनऊ में गौरी गंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह की बेटी शुभी सिंह के साथ हुई थी जिसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए थे।
अगर हम इस खबर को गहराई से समझें, तो यह दिखता है कि न्याय के प्रति विश्वास को किसी भी स्थिति में बनाए रखना ज़रूरी है। एक अच्छे न्यायिक का काम उसके कर्तव्यों को पूरा करना होता है, चाहे समक्ष उसके खिलाफ कितनी भी भयानक स्थिति क्यों न हो। दिनेश सिंह की बेनकाबी और साहस ने इसका उदाहरण साबित किया है।
मगर इस कहानी का सिर्फ़ इतना ही मतलब नहीं है। यह एक और बात भी दिखाता है – भारतीय कानून और न्यायिक प्रक्रिया के अंधविश्वास को। मुख्य रूप से जब आरोपी को इतना बड़ा और भयानक माना जा रहा है, तो उसको न्याय मिलना आम होना चाहिए, लेकिन यहां यह नहीं हुआ। मुख्तार अंसारी के मामले में न्याय की देरी ने उसकी मौत की राह खोल दी।
यह घटना हमें यह सिखाती है कि न्याय के संबंध में समय से न्याय करना ज़रूरी होता है। अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कुछ साबित हो रहा हो, तो उसके खिलाफ कार्यवाही को तत्परता से और बिना किसी दबाव के करना चाहिए। इससे न केवल दोषी को सजा मिलती है, बल्कि समाज को भी न्याय का विश्वास बना रहता है।
दिनेश सिंह की इस कठिन परिस्थिति में भी वे अपने न्यायिक कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहे। उन्होंने अपने विचारों की कोई कमी नहीं की और न्यायिक प्रक्रिया को सम्मान दिया। इससे साबित होता है कि हमारे न्यायिक प्रणाली में अच्छे और सच्चे न्यायिकों की जरूरत है, जो अपने कर्तव्यों के प्रति सजग और निष्पक्ष रहते हैं।
इस घटना से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि अगर किसी व्यक्ति अपराधिक है तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए, चाहे वह कितना भी बड़ा या शक्तिशाली क्यों न हो। न्यायिक प्रक्रिया को लंबित करने से केवल समाज को हानि होती है, जिससे उसका भरोसा और न्याय के प्रति आत्मविश्वास कम होता है। इसलिए, न्यायिक प्रक्रिया को समय पर और सच्चाई के साथ चलाना हम सभी की जिम्मेदारी है।
हम यह कह सकते हैं कि हमीरपुर के दिनेश सिंह की कहानी एक न्यायिक और समाजसेवी के साथ उनकी अपराधिक कार्रवाई के माध्यम से न्याय के प्रति आत्मविश्वास और अधिकार की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करती है। इसके अलावा, वे समाज के साथीकरण के माध्यम से सामाजिक सुधार के प्रति भी समर्थ हैं। यह उनकी दृढ़ता, साहस और न्याय के प्रति समर्पण का प्रतीक है। इसी तरह के न्यायिक और समाजसेवी होने के कारण उन्हें समाज में आदर्श के रूप में देखा जाता है।