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      || बेटियां ||

      बेटियां

      बेटियों को अब सुनो, पढने-पढाने दीजिये।
      और हर एक क्षेत्र मे, सपनें सजाने दीजिये।।
      बेटियाँ-बेटे कदम अपने मिला करके चले,
      चाह है दिल मे अगर, किस्मत जगाने दीजिये।।

      बेटियाँ पैदा हुई. दुनियां सजाने के लिये।
      दुष्टता मानव करे, उनको सताने के लिये।।
      हर कदम दुख और सुख मे साथ रहकर डोलती,
      लूटते क्यों अस्मिता, जीवन मिटाने के लिये।।

      आदि युग से ही सदा, हर ग्रन्थ माने जा रहे।
      रूप देवी नारियाँ, दिल से न जाने जा रहे।।
      कर रहे गुस्ताखियाँ खुद के पतन के ही लिए,
      दाग मानवता पे मानव, क्यों लगाने जा रहे।।

      लेखक
      राकेश तिवारी
      “राही”

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