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      || सबकी जानी मानी थी ||

      सबकी जानी मानी थी

      सुभद्रा कुमारी चौहान कवियित्री सबकी जानी मानी थी,
      झाँसी की रानी लिख वो खुद बन बैठी वरदानी थी ।

      बूढ़े भारत के लोगों में प्राणों का संचार किया था,
      मन ही मन लोगों ने भय का जैसे संहार किया था,
      वीर भाव भर सबमें सबको मिटने को तैयार किया था,
      पड़ी गुलामी की बेड़ी सदियों से तार-तार किया था,

      अंग्रेजों के आगे झुकना समझे सब नादानी थी,
      सुभद्रा कुमारी चौहान कवियित्री सबकी जानी मानी थी ।

      झाँसी की रानी की कीर्ति जग निशिदिन जो गाता है,
      राग मिलाकर और गा-गा कर फूला नहीं समाता है,
      चाहे जितनी बार पढ़े हर बार मन को भाता है,
      ऐसा प्यारा वीर गीत कब कहाँ कोई लिख पाता है ?

      लिख कर ऐसा अमर गीत सुभद्रा को गति पानी थी,
      सुभद्रा कुमारी चौहान कवियित्री सबकी जानी मानी थी ।

      गीत बहुत से लिखे मगर जो गीत वीरता से अभिभूत,
      जहाँ कहीं भी सुनते लगता ज्यों रणभेरी का है दूत,
      आजादी के लौह-कवच के ताने-बाने का ज्यों सूत,
      धरे कफन सिर निकल पड़े हर घर से भारत माँ के पूत,

      लिखा पढ़ा और किया जो उसने सब कुछ बस कुर्बानी थी,
      सुभद्रा कुमारी चौहान कवियित्री सबकी जानी मानी थी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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