मजदूर
जब आती खुद पर मजबूरी ।
चल देते करने मजदूरी ।।
आठ पहर बिक्री हो जाते ।
तब हाथों मे पैसा पाते ।।
खून-पसीना वाली कीमत ।
दिल को प्यारी लगती दौलत ।।
हाथ-पैर मे पड़ते छाले ।
मेहनत से न हटने वाले ।।
डाँट और फटकार सहन कर ।
सम्मानों को गिरवी रखकर ।।
बारोमाह काम पर जाते ।
तभी पेट की रोटी पाते ।।
जीवन के हर दर्द समेटे ।
पग पग घूँट जहर के पीते ।।
मुस्काते श्रम करते जाते ।
दुख मे ही वो सुख को पाते ।।
रहन सहन आहार जगत का ।
श्रमिक बना आधार जगत का ।।
इस प्रकृती की शोभा उससे ।
फिर भी अलग थलग है सबसे ।।
पूजनीय और बन्दनीय है ।
पर किस्मत से निन्दनीय है ।।
सबके सुख मे खुद को खोता ।
मुर्देपन सा जीवन ढ़ोता ।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
READ MORE POETRY BY RAHI JI CLICK HERE