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      || संकट में बाघ ||

      संकट में बाघ

      संकट में अब बाघ हैं नहीं है इसमें भ्रम,
      राष्ट्रीय पशु होकर भी हैं पंद्रह सौ से कम।

      अति विशेष है गर्जना, आकर्षक है रूप,
      कहते सब वनराज हैं, है वनराज स्वरूप,
      सबसे अधिक दिलेर है, सबसे अधिक है दम,
      संकट में अब बाघ हैं, नहीं है इसमें भ्रम।

      पर्यावरण असंतुलन, जंगल का संहार,
      संकट का कारण बने, लुक छिप किये शिकार,
      वन विभाग को चाहिये इस हेतु कुछ श्रम,
      संकट में अब बाघ हैं, नहीं है इसमें भ्रम।

      वक्त न आये काश वो, भूतकाल बन जाय,
      मात्र चित्र ही बाघ का, पीढ़ी के मन भाय,
      जागरुक हो जायें सब, सोते रहे न हम,
      संकट में अब बाघ हैं नहीं है इसमें भ्रम।

      स्वास्थ्य परीक्षण चाहिये नियमित व प्रतिबद्ध,
      प्रजनन हेतु भी रहे, हर सुविधा उपलब्ध,
      भोजन की सुविधा रहे, बिना विशेष उपक्रम,
      संकट में अब बाघ है नहीं है इसमें भ्रम।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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