देवी दुर्गा इस संसार का आधार है। ममता का रूप मां भवानी शोकविनाशिनी मानी जाती है। नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। नौ दिनों में जो सच्चे मन से मां अंबे की आराधना करता है उसके भय, रोग, दोष का नाश हो जाता है।
नवरात्रि में हर दिन का अपना महत्व है लेकिन अष्टमी और नवमी तिथि ज्यादा महत्वपूर्ण मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार इन दो दिनों में देवी की उपासना का फल पूरे नवरात्रि के व्रत-पूजा के समान माना गया है।
हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि 3rd अक्टूबर 2022 को शाम 4 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ हो रही है। अगले दिन 4th अक्टूबर 2022 को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा। उदयातिथि के अनुसार नवरात्रि की नवमी 4th अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी।
हवन मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 21 – दोपहर 02 बजकर 20 (4th अक्टूबर 2022), अवधि – 8 घंटे
अश्विन नवरात्रि व्रत का पारण – 02 बजकर 20 मिनट के बाद किया जाएगा (4th अक्टूबर 2022)
अश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि नवरात्रि महोत्सव का समापन दिन होता है। इस दिन मां दुर्गा के नौवें रूप देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
महानवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नौ कन्याओं का इस दिन के भोजन के लिए आमंत्रित करना चाहिए। इन सभी को मां दुर्गा के नौ रूप मानकर पूजन किया जाता है।
पूजन-भोजन के पश्चात नौ कन्याओं और एक बटुक(बालक) को उपहार भेंट करना चाहिए। कहते हैं कन्या पूजन से पूरे नवरात्रि की पूजा का दोगुना फल मिलता है।
नवरात्रि की नवमी पर हवन करने का विधान है। इसमें देवी से सहस्त्रनामों का जाप करते हुए हवन में आहुति दी जाती है। मान्यता है नवमी पर हवन करने से नौ दिन के तप का फल कई गुना और शीघ्र प्राप्त होता है।
एक बार बृहस्पतिजी और ब्रह्माजी के बीच चर्चा हो रही थी। इस दौरान बृहस्पतिजी ने ब्रह्माजी से नवरात्रि व्रत के महत्व और फल के बारे में पूछा। इसके जवाब में ब्रह्माजी ने बताया-हे बृहस्पते! प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। पीठत मां दुर्गा का सच्चा भक्त था। उसके घर सुमति नाम की कन्या ने जन्म लिया था। पीठत हर दिन मां दुर्गा की पूजा करके हवन किया करता था। इस दौरान उसकी बेटी उपस्थित रहती थी। एक दिन सुमति पूजा के दौरान मौजूद नहीं थी। वह सहेलियों के साथ खेलने चली गई। इस पर पीठत को गुस्सा आया और उसने पुत्री सुमति को चेतावनी दी कि उसका विवाह किसी कुष्ठ रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ करवाएगा। पिता की ये बात सुनकर सुमति आहत हुई और उसने कहा- हे पिता! आपकी जैसी इच्छा हो वैसा ही करो। जो मेरे भाग्य में लिखा होगा, वही होगा। सुमति की यह बात सुनकर पीठत को और ज्यादा गुस्सा आया और उसने पुत्री का विवाह एक कुष्ट रोगी के साथ करा दी। इसके साथ ही पीठत ने अपनी पुत्री से कहा कि देखता हूं भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
इसके बाद सुमति अपने पति के साथ वन में चली गई। उसकी दयनीय स्थिति देखकर मां भगवती प्रकट हुईं और कहा कि मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों से प्रसन्न हूं। इसलिए जो भी वरदान चाहिए मांग लो। इस पर सुमति ने मां भगवती से पूछा कि उसने पूर्व जन्म में ऐस क्या किया है? जवाब में मां भगवती ने कहा कि पूर्व जन्म में सुमति निषाद (भील) की स्त्री और पतिव्रता थी। एक दिन तुम्हारा पति चोरी की वजह से पकड़ा गया। इसके बाद सिपाहियों ने तुम दोनों पति-पत्नी को जेलखाने में कैद कर दिया। तुम दोनों को जेल में भोजन भी नहीं दिया गया। तुमने नवरात्र के दिनों में न तो कुछ खाया और न जल ही पिया। इस तरह नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। मां भगवती ने आगे कहा कि तुम्हारे उसी व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
इसके बाद सुमति ने मां भगवती से कहा- हे मां दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं। आपसे विनति है कि मेरे पति के कुष्ट को दूर कर दीजिए। माता ने सुमति की मनोकामना पूरी कर दी। इसके बाद सुमति ने मां भगवती की अराधना की। प्रसन्न होकर मां भगवती ने कहा कि तुम्हें उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र होगा।
इसके बाद मां भगवति इस पर मां भगवती ने अपने भक्तों को बताया कि जो भी चैत्र या अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से 9 दिन तक व्रत रहेगा और घट स्थापना करने के बाद, विधि अनुसार पूजा करेगा। उस पर मेरी कृपा बनी रहेगी।