प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को ललिता पंचमी मनायी जाती है। ललिता पंचमी को उपांग ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
वहीं हिन्दू धर्म में इस व्रत का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन माता ललिता का व्रत रखना अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
ललिता पंचमी शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन मनायी जाती है।
इस दिन उपांग ललिता व्रत किया जाता है। ललिता देवी माता सती का ही स्वरूप हैं, इन्हें त्रिपुर सुन्दरी भी कहा जाता है।
आदि शक्ति माता ललिता देवी 10 महाविद्याओं में से एक हैं।
ललिता पंचमी का यह व्रत बहुत ही शुभ फल देने वाला है।
माता त्रिपुर सुन्दरी करने से धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
उपांग ललिता व्रत पूजाविधि
ललिता पंचमी के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद आप भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें।
अब आप एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल के छींटे दें। अब आप चौकी पर माता ललिता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
अब आप माता की प्रतिमा पर गंगाजल के छींटे दें और माता के चरण पखारें। इसके बाद आप माता को श्रृंगार की सभी सामग्री अर्पित करें।
माता को लाल और पीले पुष्प अति प्रिय हैं, इसीलिए माता को लाल और पीले फूलों की माला पहनाएं।
अब आप माता को मिठाई, फल आदि अर्पित करें।
अब माता के समक्ष घी का दीया जलाकर उनकी आरती करें।
पूजा संपन्न होने के बाद श्रृंगार की सामग्री अपनी सास या ननद को दे दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें।
ललिता पंचमी शुभ मुहूर्त
- ललिता पंचमी व्रत तिथि : 30th सितंबर 2022, दिन शुक्रवार
- पंचमी तिथि प्रारंभ : 30th सितंबर 2022, 12:08 AM
- पंचमी तिथि समापन : 30th सितंबर 2022, 10:34 PM
ललिता पंचमी का महत्व
ललिता पंचमी के दिन देवी ललिता के लिए व्रत व् पूजन किया जाता है।
इसे उपांग ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है|
यह व्रत शरद नवरात्री के पंचमी तिथि को किया जाता है|
इन्हे त्रिपुरा सुंदरी और षोडशी के नाम से भी जाना जाता है।
ललिता देवी माता सती पार्वती का ही एक रूप हैं।
आदि शक्ति माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं।
यह व्रत बहुत शुभ फल देने वाला है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता ललिता कामदेव के शरीर की राख से उत्पन्न हुए ‘भांडा’ नामक राक्षस को मारने के लिए प्रकट हुई थीं।
क्यों कहलातीं है ये देवी माँ “ललिता”?
पुराणों के अनुसार जब माता सती अपने पिता दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग देती हैं तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाए घूमने लगते हैं, ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है।
जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित करते हैं, तब भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर इन्हें ‘ललिता’ के नाम से पुकारा जाने लगा।
कैसा है माँ ललिता का स्वरुप?
कालिका पुराण के अनुसार देवी ललिता की दो भुजाएं हैं।
यह माता गौर वर्ण होकर रक्तिम कमल पर विराजित हैं।
दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को ‘चण्डी’ का स्थान प्राप्त है।
इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।
ललिता पंचमी की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ललिता पंचमी का व्रत करने से मां ललिता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी सती ने अपने पिता के द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी तब भगवान शिव दुख के कारण उनकी देह को लेकर इधर-उधर घूमने लगते हैं जिससे सारी सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगता है।
तब भगवान शिव का मोह भंग करने हेतु भगवान विष्णु अपने चक्र से सती के देह को विभाजित कर देते हैं।
तब भगवान शंकर उन्हें अपने हृदय में धारण करते हैं।
शिव जी के हृदय में धारण करने के कारण ये ललिता कहलाई।
ललिता पंचमी का व्रत समस्त सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है।