ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा करो ना करो यकीन,
जन जन को लग जायेगी सुनने हेतु मशीन ।
मंद मधुर संगीत अब चलन में रहा नहीं,
बड़े-बड़े ड्रम ढोल जैसे वाद्य यंत्र हैं नवीन ।
हर गाड़ी में हार्न अब कान फोड़ लगते,
कान के पर्दो की दशा दीन, हीन, गमगीन ।
जितनी फिल्म डरावनी,उतनी ध्वनि बुलंद,
किसी-किसी के प्राण ही लेती है ध्वनि छीन ।
हर प्रदूषण ला रहा अब पर्यावरण विकार,
प्रकृति की क्षमता यहां पल-पल होती हीन ।
कोई नेता आये तो लगें चोंगे मीलों मील,
भले रही बीमार तुम बहुत अधिक संगीन ।
रोक नहीं गया अगर नित-नित बढ़ता शोर,
सुख शान्ति और चैन सब हो जायेंगे विलीन ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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