हिन्दू धर्म में केसरिया, पीला, गेरुआ, भगवा और लाल रंग को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। गेरू और भगवा रंग एक ही है, लेकिन केसरिया में मामूली-सा अंतर है। रंगों से जुड़े मनोविज्ञान और उसके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को जानकर ही हिन्दू धर्म में कुछ विशेष रंगों को विशेष कार्यों में शामिल किया गया है।
आओ जानते हैं कि हिन्दू धर्म में क्यों महत्वपूर्ण हैं ये सभी रंग और पीला रंग क्यों सबसे ज्यादा महत्व रखता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार मूलत: पांच रंग ही होते हैं- कला, सफेद, लाल, नीला और पीला।
काले और सफेद को रंग मानना हमारी मजबूरी है जबकि यह कोई रंग नहीं है।
इस तरह तीन ही प्रमुख रंग बच जाते हैं- लाल, पीला और नीला।
आपने आग जलते हुए देखी होगी- उसमें यह तीन ही रंग दिखाई देते हैं।
जब कोई रंग बहुत फेड हो जाता है तो वह सफेद हो जाता है और जब कोई रंग बहुत डार्क हो जाता है तो वह काला पड़ जाता है।
लाल रंग में अगर पीला मिला दिया जाए, तो वह केसरिया रंग बनता है।
नीले में पीला मिल जाए, तब हरा रंग बन जाता है।
इसी तरह से नीला और लाल मिलकर जामुनी बन जाते हैं।
आगे चलकर इन्हीं प्रमुख रंगों से हजारों रंगो की उत्पत्ति हुई।
अग्नि का रंग
अग्नि में आपको लाल, पीला और केसरिया रंग ही अधिक दिखाई देगा।
हिन्दू धर्म में अग्नि का बहुत महत्व है।
यज्ञ, दीपक और दाह-संस्कार अग्नि के ही कार्य हैं।
अग्नि का संबंध पवित्र यज्ञों से भी है इसलिए भी केसरिया, पीला या नारंगी रंग हिन्दू परंपरा में बेहद शुभ माना गया है।
अग्नि संपूर्ण संसार में हवा की तरह व्याप्त है लेकिन वह तभी दिखाई देती है जबकि उसे किसी को जलाना, भस्म करना या जिंदा बनाए रखना होता है।
संन्यासी का स्वभाव भी अग्नि की तरह होता है, लेकिन वह किसी को जलाने के लिए नहीं बल्कि ठंड जैसे हालात में ऊर्जा देने के लिए सूर्य की तरह होता है।
संन्यासी का पथ भी अग्निपथ ही होता है।
ऐसा कहा जाता है कि अग्नि बुराई का विनाश करती है और अज्ञानता की बेड़ियों से भी व्यक्ति को मुक्त करवाती है।
साधुओं का रंग
अग्नि संपूर्ण संसार में हवा की तरह व्याप्त है लेकिन वह तभी दिखाई देती है जबकि उसे किसी को जलाना, भस्म करना या जिंदा बनाए रखना होता है।
संन्यासी का स्वभाव भी अग्नि की तरह होता है, लेकिन वह किसी को जलाने के लिए नहीं बल्कि ठंड जैसे हालात में ऊर्जा देने के लिए सूर्य की तरह होता है।
संन्यासी का पथ भी अग्निपथ ही होता है।
ऐसा कहा जाता है कि अग्नि बुराई का विनाश करती है और अज्ञानता की बेड़ियों से भी व्यक्ति को मुक्त करवाती है।
लाल रंग
शरीर में रक्त महत्वपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में विवाहित महिला लाल रंग की साड़ी और हरी चूड़ियां पहनती है।
इसके अलावा विवाह के समय दूल्हा भी लाल या केसरी रंग की पगड़ी ही धारण करता है, जो उसके आने वाले जीवन की खुशहाली से जुड़ी है।
लाल रंग उत्साह, सौभाग्य, उमंग, साहस और नवजीवन का प्रतीक है।
प्रकृति में लाल रंग या उसके ही रंग समूह के फूल अधिक पाए जाते हैं।
मां लक्ष्मी को लाल रंग प्रिय है। मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं।
रामभक्त हनुमान को भी लाल व सिन्दूरी रंग प्रिय हैं इसलिए भक्तगण उन्हें सिन्दूर अर्पित करते हैं।
पीला रंग
पीले रंग के वस्त्रों को पितांबर कहते हैं।
इससे गुरु का बल बढ़ता है।
गुरु हमारे भाग्य को जगाने वाला गृह है।
जीवन में निराशा है तो पतझड़ आ जाएगा अर्थात निराशा के भाव आपको संन्यास या आत्महत्या की ओर ले जाएंगे।
निराशा दो तरह की होती है।
एक संन्यासी की जिसमें वैराग्य भाव जाग्रत होता है मृत्य एक सत्य है यह जानकर।
पीला रंग वैराग्य का भी प्रतीक है।
जब पतझड़ आता है तो पत्ते पीले पड़ जाते हैं।
दूसरी निराशा सांसारी की होती है जो जीवन में किसी मोर्चे पर असफल हो जाता है।
अत: संसारी के लिए हर दम प्रसन्नता और उत्साह जरूरी है तभी वह उन्नती कर सकता है।
किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य में पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है।
पूजा-पाठ में पीला रंग शुभ माना जाता है।
केसरिया या पीला रंग सूर्यदेव, मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
यह रोशनी को भी दर्शाता है। इस तरह पीला रंग बहुत कुछ कहता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग के उपयोग से हमारे रक्त में लाल और श्वेत कणिकाओं का विकास होता है।
अर्थात रक्त में हिमोग्लोबिन बड़ने लगता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पीला रंग रक्त संचार बढ़ाता है।
थकान दूर करता है।
पीले रंग के संपर्क में रहने से रक्त कणों के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ती है।
सूजन, टॉन्सिल, मियादी बुखार, नाड़ी शूल, अपच, उल्टी, पीलिया, खूनी बवासीर, अनिद्रा और काली खांसी का नाश होता है।
केसरिया या भगवा रंग
चित्त क्षोम और रात्रि अंधता में इस रंग का प्रयोग करना चाहिए।
भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है, मतलब हिन्दू की चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है यह।
केसरिया रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है।
शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था।
केसरिया या भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है।
सनातन धर्म में केसरिया रंग उन साधु-संन्यासियों द्वारा धारण किया जाता है, जो मुमुक्षु होकर मोक्ष के मार्ग पर चलने लिए कृतसंकल्प होते हैं।
ऐसे संन्यासी खुद और अपने परिवारों के सदस्यों का पिंडदान करके सभी तरह की मोह-माया त्यागकर आश्रम में रहते हैं।
भगवा वस्त्र को संयम, संकल्प और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।