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      भौम प्रदोष व्रत आज | तिथि | पूजा का समय | महत्व | पूजा विधि | व्रत कथा

      सावन का महीना भोले शंकर को समर्पित होता है। इस माह में भोले शंकर की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। प्रदोष व्रत भी भोले शंकर को ही समर्पित होते हैं। सावन के माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। 

      भौम प्रदोष व्रत की तिथि
      • प्रदोष व्रत प्रारंभ: 09 अगस्त 2022 शाम 05:46 बजे
      • प्रदोष व्रत समाप्ति : 10 अगस्त 2022 दोपहर 02:16 बजे

      प्रदोष व्रत व प्रदोषम व्रत एक प्रसिद्ध हिन्दू व्रत है जो कि भगवान शिव का आर्शीवाद पाने के लिए किया जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने में दो बार आता है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में। यह व्रत दोनों पक्षों के त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। प्रदोष व्रत अगर सोमवार के दिन आता है तो उसे सोम प्रदोषम कहा जाता है। मंगलवार के दिन आता है तो उसे भौम प्रदोषम कहा जाता है और शनिवार के दिन आता है तो उसे शनि प्रदोषम कहा जाता है। यह व्रत सूर्यास्त के समय पर निर्भर करता है।

      भौम प्रदोष व्रत में पूजा का समय

      प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होती हैं।

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      भौम प्रदोष व्रत का महत्व

      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। 

      प्रदोष व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। 

      इस व्रत को करने से संतान पक्ष को भी लाभ होता है।

      इस व्रत को करने से भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

      भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
      • सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
      • स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
      • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
      • अगर संभव है तो व्रत करें।
      • भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
      • भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
      • इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें।
      • किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। 
      • भगवान शिव को भोग लगाएं।
      • इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
      • भगवान शिव की आरती करें। 
      • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
      भौम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रत कथा

      मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है –

      एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती  थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।

      हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? 

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      पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज। 

      हनुमान (वेशधारी साधु)  बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे। 

      वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।

      साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। 

      यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया। 

      वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।

      इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।

      इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ। 

      लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। 

      हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

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