कालाष्टमी के दिन काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु व्रत उपवास भी रख जाता है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी की रात्रि में अनुष्ठान करते हैं। इसमें कठिन भक्ति कर काल भैरव देव को प्रसन्न करते हैं। उनकी कृपा से साधक को विशेष कार्य में यथाशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है।
इस प्रकार, सावन माह में कालाष्टमी 9 जुलाई को है।
कालाष्टमी के दिन काल भैरव देव की पूजा-उपासना की जाती है।
साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु साधक व्रत उपवास भी रखते हैं।
तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी की रात्रि में अनुष्ठान करते हैं।
इसमें कठिन भक्ति कर काल भैरव देव को प्रसन्न करते हैं।
उनकी कृपा से साधक को सिद्धि प्राप्त होती है।
कालाष्टमी तिथि पर विधि पूर्वक काल भैरव देव की पूजा करने से जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं।
साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मासिक कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, सावन महीने की अष्टमी तिथि 9 जुलाई को शाम में 07 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर 10 जुलाई को 06 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी।
कालाष्टमी पर रात्रि प्रहर में भैरव देव की पूजा की जाती है।
अतः 9 जुलाई को कालाष्टमी मनाई जाएगी।
मासिक कालाष्टमी का महत्व
अघोरी समाज के लिए लोग धूमधाम से कालाष्टमी का पर्व मनाते हैं।
इस दिन भगवान शिव और भैरव देव के मंदिरों को सजाया जाता है।
बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर पर आते हैं।
काल भैरव देव की पूजा-उपासना कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इस अवसर पर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती हैं।
साथ ही महाभस्म आरती की जाती है।
मासिक कालाष्टमी की पूजा विधि
कालाष्टमी के दिन ब्रह्म बेला में उठकर भगवान शिव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें।
इसके बाद घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें।
अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। तदोउपरांत, सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें।
अब पंचोपचार कर काल भैरव देव की पूजा पंचामृत,दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें।
इस समय शिव चालीसा और भैरव कवच का पाठ और मंत्र का जाप करें।
पूजा के अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि की कामना करें।
दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में पुनः विधि विधान से पूजा आरती कर फलाहार करें।
अगले दिन पूजा पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।
मासिक कालाष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली।
इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई।
सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है?
सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए।
इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया।
इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है।
इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है।
शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।
भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं।
इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया।
ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।
भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा।
इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है।
इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।