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      आप कौन सा कार्य करेंगे | जानिए कुंडली के अनुसार | 2YoDo विशेष

      बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि कौन सा व्यापार फलीभूत होगा या क्या मुझे प्राइवेट या सरकारी नौकरी करना चाहिए? कुंडली के अनुसार मुझे कौन सा कार्य करना चाहिए जिसमें मुझे सफलता मिले। इन्हीं प्रश्नों के समाधान के लिए यहां प्रस्तुत हैं कुछ सामान्य जानकारियां। आप निम्नलिखित ग्रहों के आधार पर ही अपना करियर चुनेंगे तो जल्दी सफलता मिलेगी। यदि आपको लगता है कि मेरे ग्रह अनुकूल नहीं हैं, तो आप इसके उपाय करें। 

      दशम भाव का विश्लेषण

      कुंडली में व्यापार या नौकरी को दशम भाव से देखा जाता है। दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहते हैं। इस भाव से यह देखा जाता है कि व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा अथवा प्राइवेट? या व्यापार करेगा तो कौन सा और उसे किस क्षेत्र में अधिक सफलता मिलेगी? सप्तम भाव साझेदारी का होता है। इसमें मित्र ग्रह हों तो पार्टनरशिप से लाभ। शत्रु ग्रह हो तो पार्टनरशिप से नुकसान। मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु ये आपस में मित्र होते हैं। सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं।

      ऐसा भी कहा जाता है कि मन का स्वामी चंद्र जिस राशि में हो, उस राशि से स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर या चंद्र से उसके युति अथवा दृष्टि संबंध के आधार पर यदि कोई व्यक्ति अपनी आजीविका अथवा कार्य का चयन करता है। बलवान चंद्र से दशम भाव में गुरु हो तो गजकेसरी नामक योग होता है किंतु गुरु कर्क या धनु राशि का होना चाहिए। ऐसा जातक यशस्वी, परोपकारी धर्मात्मा, मेधावी, गुणवान और राजपूज्य होता है। यदि जन्म लग्न, सूर्य और दशम भाव बलवान हो तथा पाप प्रभाव में न हो तो जातक शाही कार्यों से धन कमाता है और यशस्वी होता है।

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      दशम भाव में केवल शुभ ग्रह हों तो अमल कीर्ति नामक योग होता है किंतु उसके अशुभ भावेश न होने तथा अपनी नीच राशि में न होने की स्थिति में ही इस योग का फल मिलेगा। दशमेश के ब‍ली होने से जीविका की वृद्धि और निर्बल होने पर हानि होती है। लग्न से द्वितीय और एकादश भाव में बली एवं शुभ ग्रह हो तो जातक व्यापार से अधिक धन कमाता है। धनेश और लाभेश का परस्पर संबंध धनयोग का निर्माण करता है। दशम भाव का कारक यदि उसी भाव में स्थित हो अथवा दशम भाव को देख रहा हो तो जातक को आजीविका का कोई न कोई साधन अवश्य मिल जाता है।

      1. यदि लग्न सप्तम, दशम भाव का कार्येश हो तब जातक को कारोबार के द्वारा धनार्जन होगा और यदि षष्ठ और दशम का कार्येश हो तो नौकरी से धन अर्जित करेगा।
      2. तृतीय भाव का कार्येश हो तो लेखन, छपाई, एजेंसी, कमीशन एजेंट, रिपोर्टर, सेल्समैन और संस्‍थाओं से धन प्राप्त होगा। मतलब यह कि वह इस क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा।
      3. अगर द्वितीय और पंचम का कार्येश हो तो जमीन, घर, बगीचे, वाहन और शिक्षा संस्थानों से धन प्राप्त करेगा। इसके अतिरिक्त नाटक, सिनेमा, ढोल, रेस, जुआ, मंत्र, तंत्र और पौरोहित्य कर्म से धन अर्जित करेगा।
      4. यदि द्वितीय और सप्तम का कार्येश हो तो विवाह, विवाह मंडल, पार्टनरशिप और कानूनी सलाहकार के कार्य से धन अर्जित करेगा।
      5. यदि दशम भाव में एक से अधिक ग्रह हों और उसमें से जो ग्रह सबसे अधिक बलवान होगा, जातक उसके अनुसार ही व्यापार करेगा। जैसे दशम भाव में मंगल बलवान हो तो जातक प्रॉपर्टी, निवेश आदि का व्यवसाय करेगा अथवा पुलिस या सेना में जाएगा।
      6. यदि दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो दशमेश यानी दशम भाव के स्वामी के अनुसार व्यापार तय होगा। यदि दशम भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति कॉस्मेटिक्स, सौंदर्य प्रसाधन, ज्वेलरी आदि के कार्यों से लाभ अर्जित करता है। दशम भाव का स्वामी जिन ग्रहों के साथ होता है, उनके अनुसार व्यक्ति व्यापार करता है।
      7. सूर्य के साथ गुरु हो तो व्यक्ति होटल व्यवसाय, अनाज आदि के कार्य से लाभ कमाता है। एकादश भाव आय स्थान है। इस भाव में मौजूद ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यापार तय किया जाता है।
      8. जन्म कुंडली में कोई ग्रह जब लग्नेश, पंचमेश या नवमेश होकर दशम भाव में स्थित हो या दशमेश होकर किसी भी त्रिकोण (1, 5, 9 भावों) में या अपने ही स्थान में स्थित हों तो व्यक्ति की आजीविका के पर्याप्त साधन होते हैं। वह व्यवसाय या नौकरी में अच्छी प्रगति करता है। दशमेश या दशम भावस्थ ग्रह का बल और शुभता दोनों उसके शुभ फलों में द्विगुणित वृद्धि करते हैं।
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      दशम भावस्थ नवग्रह फल

      सूर्य : दशम भाव में स्थित मेष, कर्क, सिंह या धनु राशि का सूर्य सैन्य या पुलिस अधिकारी बनाता है जबकि वृश्चिक राशि का सूर्य चिकित्सा अधिकारी बनाता है।

      चंद्र– इस भाव में यदि शुभ चंद्र बली होकर बैठा है तो जातक को दैनिक उपयोग में आनेवाली वस्तुओं का व्यापार करना चाहिए उससे वह लाभ प्राप्त करेगा। लेकिन यदि मंगल या शनि की युति हो तो असफलता मिलेगी।

      मंगल– मेष, सिंह, वृश्चिक या धनु राशि का मंगल जातक को चिकित्सक और सर्जन बनाता है लेकिन यदि मंगल का सूर्य से संबंध हो तो व्यक्ति सुनार या लोहार का कार्य करेगा।

      बुध– लग्नेश, द्वितीयेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर कन्या या सिंह राशि का बुध गुरु से दृष्ट या युत हो तो व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी सफलता अर्जित करता है। वह प्रोफेसर या लेक्चरर बन सकता है। हालांकि बुध के प्रभाव से जातक बैंककर्मी या बैंक से संबंधित कार्य भी कर सकता है। लेकिन यदि बुध शुक्र के साथ या शुक्र की राशि में हो तो जातक फिल्म या विज्ञापन से संबंधित व्यवसाय करता है।

      बृहस्पति– बृहस्पति का संबंध नवम भाव से है। लेकिन यदि वह दशम भाव में स्थित है तो वह नीच का माना जाता है। लेकिन बृहस्पति का संबंध जब नवमेश से हो तो व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धन अर्जित करता है। बृहस्पति यदि बलवान और राजयोगकारक हो तो जातक को न्यायाधीश बना देता है। लेकिन बृहस्पति मंगल के प्रभाव में हो तो जातक फौजदारी वकील बनता है।

      शुक्र– दशम भाव में स्थित शुक्र जातक को सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, फैंसी वस्तुओं आदि का निर्माता या विक्रेता बनाता है। शुक्र का संबंध द्वितीयेश, पंचमेश या बुध से हो तो जातक गायन और वादन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।

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      शनि– यदि दशम भाव में बलवान शनि का मंगल से संबंध हो तो जातक इलेक्ट्रॉनिक फिल्म में कार्य करता है। यदि बुध से संबंध हो तो मैकेनिकल इंजीनियर बनता है। शनि का संबंध यदि चतुर्थ भाव या चतुर्थेश से हो तो जातक तेल, कोयला, लोहा आदि के व्यापार से धन अर्जित करता है। लेकिन यदि शनि का राहु से संबंध हो तो व्यक्ति चमड़े, रैक्जीन, रबर आदि के व्यापार में सफल होता है।

      राहु– राहु यदि मिथुन राशि का होकर दशम भाव में स्थित हो तो जातक राजनीति, सेना, पुलिस या रेलवे के क्षेत्र में कार्य करता है।

      केतु– दशम भाव का केतु धनु या मीन में हो तो जातक व्यापार में सफलता प्राप्त कर खूब वैभव, धन और यश कमाता है, बशर्ते कि उसके शत्रु ग्रह उसके साथ न हो या वह शत्रु ग्रहों से दृष्ट न हो। 

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