More
    29.1 C
    Delhi
    Tuesday, May 7, 2024
    More

      आज से होलाष्टक शुरू | मांगलिक कार्यों पर लगेगी रोक | 2YoDo विशेष

      फाल्गुन माह के शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन माह की पूर्णिमा तक होलाष्टक का समय माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। होला अष्टक अर्थात होली से पहले के वो आठ दिन जिस समय पर सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं। होलाष्टक का लगना होली के आने की सूचना है।

      होलाष्टक में आने वाले आठ दिनों का विशेष महत्व होता है। इन आठ दिनों के दौरान पर सभी विवाह, गृहप्रवेश या नई दुकान खोलना इत्यादि जैसे शुभ कार्यों को नहीं किया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही होलाष्टक की समाप्ति होती है।

      कब से कब तक होगा होलाष्टक
      • होलाष्टक का आरंभ – 27 फरवरी 2023 को सोमवार के दिन से होगा।
      • होलष्टक समाप्त होगा – 07 मार्च 2023 को मंगलवार के दिन होगा।

      होलाष्टक का समापन होलिका दहन पर होता है। रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है। होली के त्यौहार की शुरुआत ही होलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलैण्डी तक रहती है।

      इस समय पर प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।

      होलाष्टक पर नहीं किए जाते हैं ये काम

      होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत के क्षेत्रों में अधिक मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां कुछ मुख्य कामों का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऎसे भी काम हैं जो इन आठ दिनों में बिलकुल भी नहीं किए जाते हैं।

      ALSO READ  || जनसंख्या के वेग पर ||

      यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है।

      होलाष्टक के समय पर हिंदुओं में बताए गए शुभ कार्यों एवं सोलह संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाने का विधान रहा है। मान्यता है की इस दिन अगर अंतिम संस्कार भी करना हो तो उसके लिए पहले शान्ति कार्य किया जाता है।

      उसके उपरांत ही बाकी के काम होते हैं। संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना गया है।

      इस समय पर कुछ शुभ मागंलिक कार्य जैसे कि विवाह, सगाई, गर्भाधान संस्कार, शिक्षा आरंभ संस्कार, कान छेदना, नामकरण, गृह निर्माण करना या नए अथवा पुराने घर में प्रवेश करने का विचार इस समय पर नहीं करना चाहिए। ज्योतिष अनुसार, इन आठ दिनों में शुभ मुहूर्त का अभाव होता है।

      होलाष्टक की अवधि को साधना के कार्य अथवा भक्ति के लिए उपयुक्त माना गया है। इस समय पर केवल तप करना ही अच्छा कहा जाता है। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए किया गया धर्म कर्म अत्यंत शुभ दायी होता है। इस समय पर दान और स्नान की भी परंपरा रही है।

      होलाष्टक पर क्यों नहीं किए जाते शुभ मांगलिक काम

      होलाष्टक पर शुभ और मांगलिक कार्यों को रोक लगा दी जाती है। इस समय पर मुहूर्त विशेष का काम रुक जाता है। इन आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता है। इस समय पर शुभता की कमी होने के कारण ही मांगलिक आयोजनों को रोक दिया जाता है।

      पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों के राजा हिरयकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति न करने को कहा। लेकिन प्रह्लाद अपने पिता कि बात को नहीं मानते हुए श्री विष्णु भगवान की भक्ति करता रहा। इस कारण पुत्र से नाराज होकर राजा हिरयकश्यप ने प्रह्लाद को कई प्रकार से यातनाएं दी।

      ALSO READ  उत्पन्ना एकादशी 2023 | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      प्रह्लाद को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक बहुत प्रकार से परेशान किया। उसे मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान किया। प्रह्लाद को मारने का भी कई बार प्रयास किया गया। प्रह्लाद की भक्ति में इतनी शक्ति थी की भगवान श्री विष्णु ने हर बार उसके प्राणों की रक्षा की।

      आठवें दिन यानी की फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को जिम्मा सौंपा। होलिका को वरदान प्राप्त था की वह अग्नि में नहीं जल सकती। होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है।

      मगर भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त को बचा लिया। उस आग में होलिका जलकर मर गई लेकिन प्रह्लाद को अग्नि छू भी नहीं पायी। इस कारण से होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं और शुभ समय नहीं माना जाता।

      होलाष्टक पर कर सकते हैं ये काम

      होलाष्टक के समय पर जो मुख्य कार्य किए जाते हैं। उनमें से मुख्य हैं होलिका दहन के लिए लकडियों को इकट्ठा करना। होलिका पूजन करने के लिये ऎसे स्थान का चयन करना जहां होलिका दहन किया जा सके।

      होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को शुद्ध किया जाता है। उस स्थान पर उपले, लकडी और होली का डंडा स्थापित किया जाता है। इन काम को शुरु करने का दिन ही होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है।

      शहरों में यह परंपरा अधिक दिखाई न देती हो, लेकिन ग्रामिण क्षेत्रों में आज भी स्थान-स्थान पर गांव की चौपाल इत्यादि पर ये कार्य संपन्न होता है। गांव में किसी विशेष क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर होली पूजन के स्थान को निश्चित किया जाता है।

      ALSO READ  Bhagwan Shri Krishna's Teachings For The Adulthood

      होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक रोज ही उस स्थान पर कुछ लकडियां डाली जाती हैं। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बहुत बड़ा ढेर तैयार किया जाता है।

      शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के समय पर व्रत किया जा सकता है, दान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इन दिनों में सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न, धन इत्यादि का दान किया जाना अनुकूल फल देने वाला होता है।

      होलाष्टक का पौराणिक महत्व

      फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है।

      साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।

      इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है। होलाष्टक की एक कथा हरिण्यकश्यपु और प्रह्लाद से संबंध रखती है। होलाष्टक इन्हीं आठ दिनों की एक लम्बी आध्यात्मिक क्रिया का केन्द्र बनता है जो साधक को ज्ञान की परकाष्ठा तक पहुंचाती है।

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,789FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles