नमस्कार मित्रों,
आपने लखनऊ की नवाबियत सुनी होगी.
वैसे अगर लखनऊ से बाहर के हैं तो सुनी तो होगी समझी ना होगी.
चलिए आज हम सुनाते और समझते है आपको ।
हमाए लखनऊ में नवाब साहब ने वो बड़ा भारी भूल भूलैय्या बनवाया था.
ऐसा क़िला जिसके अंदर दुश्मन आकर रास्ता भूल जाए. वह असंख्य एक जैसे खिड़की दरवाज़ों में भटकता रह जाए.
भूल भूलैय्या का डिज़ायन ऐसा कि कोई अगर फुसफुसाए भी तो दूसरे कोने तक आवाज़ चली जाए.
दुश्मन फुसफुसा कर साथी को बुलाएगा तो नवाब साहब के सिपाहियों को खबर.
क़िले में सैकड़ों झरोखे जो cctv की तरह काम करते.
फ़लानी जगह से तीर मार दो दरवाज़े पर खड़े व्यक्ति की आँख फूट जाएगी.
तब भी अगर दुश्मन आ जाए हार जाओ तो एक कुवाँ.
जिसके अंदर से सुरंगे निकली थी अलग अलग शहरों को जाने के लिए.
संक्षेप में नवाब साहब को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था.
लेकिन ऐन मौक़े पर जब ज़रूरत पड़ी, तो नवाब साहब के सारे सिपाही पहले ही भाग गए.
अंग्रेज बिल्कुल बग़ल तक आए तो लोगों ने बोला नवाब साहब भागो सुरंग से निकलकर.
नवाब साहब ने बोला मेरी जूती कहाँ है.
जूती पहनाने वाला भाग चुका था.
अब नवाब साहब खुद जूती कैसे पहनते.
लेटे लेटे गिरफ़्तार हो गए.
यह कहलाती है नवाबी.
जान चली जाए लेकिन नवाबी शौक़ में कमी नहीं होनी चाहिए.
लखनऊ के बड़े रियल एस्टेट group के मालिक के बेटे हैं.
लखनऊ में अभी करोना से त्राहि माम मचा हुआ था.
हर दूसरा सख्श कोविड ग्रस्त था.
सामान्य लोग जान बचाते भाग रहे थे.
लेकिन नवाब साहब के बेटे ठहरे नवाब.
छोटे नवाब ने समय का सदप्रयोग करने के लिए सात लाख रुपए में थाई लैंड से अप्सरा मंगाई.
अप्सरा लखनऊ आई आते ही उसे कोविड हो गया.
छोटे नवाब ने थाई एंबेसी में खबर कर दी ले जाओ इसे इलाज करवाओ.
अप्सरा का कोविड से लड़ते हुवे लखनऊ में निधन हो गया.
विदेशी नागरिक वह भी थाई लैंड की लड़की का लखनऊ के कोविड पीक में आना किसी को हज़म ना हुआ था.
मर जाने के बाद तो तहलका मचना स्वाभाविक था.
पुलिस एंक्वरी में सारी बातें खुल कर सामने आई.
इसे कहते हैं नवाबी.
जान रहे ना रहे. दुनिया रहे ना रहे. नवाबी रहनी चाहिए. शौक़ बड़ी चीज़ है..