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      देवशयनी एकादशी 2023 | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अगले 5 मास के लिए योग निद्रा में चल जाएंगे। हिंदू धर्म में हर एक एकादशी का विशेष महत्व है।

      हर साल 24 एकादशी पड़ती है जिसमें से हर मास 2 एकादशी पड़ती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है।

      इसके अलावा इसे आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है।

      शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से ही भगवान

      विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हैं और सृष्टि का संचार भगवान शिव को देते हैं।

      इसी के साथ सावन शुरू हो जाते हैं। 

      भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने वाले चार मास को चातुर्मास कहते हैं।

      लेकिन इस साल अधिक मास पड़ने के कारण चातुर्मास 4 नहीं बल्कि 5 माह के पड़ रहे हैं।

      इस दौरान मांगलिक और शुभ कामों को करने का मनाही होती है।

      पांच माह बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जाग जाएंगे और फिर सृष्टि का संचार करने लगेंगे।

      देवशयनी एकादशी की तिथि 
      • एकादशी तिथि आरंभ- 29 जून की सुबह 3 बजकर 17 मिनट  से शुरू
      • एकादशी तिथि समाप्त- 30 जून को सुबह 2 बजकर 42 मिनट तक
      • देवशयनी एकादशी 2023 तिथि- 29 जून 2023 को व्रत रखा जाएगा।
      देवशयनी एकादशी व्रत का पारण 

      व्रत पारण का समय- 30 जून को दोपहर 1 बजकर 48 मिनट से 4 बजकर 36 मिनट तक

      देवशयनी एकादशी का महत्व

      हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन से अगले चार मास के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं।

      इसके साथ ही मांगलिक और शुभ कार्यों में पाबंदी लग जाती है। हालांकि, पूजा-अनुष्ठान के अलावा गृह प्रवेश, वाहन-ज्वैलरी खरीदने की मनाही नहीं होती है।

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      देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हर संकट दूर हो जाते हैं और पापों का नाश हो जाता है।

      इसके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

      देवशयनी एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशी व्रतों में से एक है जिसे पहली एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है।

      इस एकादशी को पूरी श्रद्धा भाव के साथ जो व्यक्ति रखता है, तो उसे सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

      सांसारिक सुखों को भोगने के बाद वे अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

      देवशयनी एकादशी की पूजा विधि 

      देवशयनी एकादशी व्रत को करने के लिये इस व्रत की तैयारी दशमी की तिथि से ही शुरू कर देनी चाहिए।

      सबसे पहले दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में किसी तरह के तामसिक भोजन को स्थान न दें।

      संभव हो तो भोजन में नमक का प्रयोग न करें, क्योंकि ऐसा करने से व्रत के पुण्य में कमी होती है।

      इस दिन व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए।

      इसी के साथ जौ, मांस, गेहूं तथा मूंग की दाल का सेवन करने से बचना चाहिए।

      यह व्रतदशमी तिथि से शुरु होकर द्वादशी तिथि की सुबह तक चलता है।

      दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही तिथियों में सत्य बोलना और दूसरों को दुखी या अहित करने वाले कार्य नहीं करना चाहिए।

      इसी के साथ शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताये गए है, उनका सख्ती से पालन करें। एकादशी तिथि में व्रत करने के लिये सुबह जल्दी उठकर, नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करें।

      एकादशी का स्नान किसी तीर्थ या पवित्र नदी में करने का विशेष महत्व है।

      लेकिन यदि ऐसा संभव न हो तो तो साधक को इस दिन घर में ही स्नान कर लेना चाहिए और यदि संभव हो तो स्नान करते समय शुद्ध जल के साथ मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए।

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      दैनिक कार्य और स्नान के बाद भगवान विष्णु का पूजन करें। पूजन करने के लिए चावल के ऊपर कलश रख कर, कलश को लाल वस्त्र से बांधना चाहिए, इसके बाद उस कलश की पूजा करनी चाहिए।

      इसे कलश स्थापना के नाम से जाना जाता है।

      कलश के ऊपर भगवान की प्रतिमा या तस्वीर रख कर पूजा करनी चाहिए।

      ये सभी क्रियाएं करने के बाद धूप, दीप और पुष्प से पूजा करनी चाहिए।

      देवशयनी एकादशी की कथा 

      सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा के प्रति समर्पित था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी।

      उसके राज्य में किसी को भी कोई परेशानी नहीं थी। एक समय उस राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दु:खी हो गई।

      राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। इस विपत्ति को देखते हुए एक दिन राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिए। वे अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुए अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे।

      वहां राजा ने अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया और विनीत भाव से कहा कि हे भगवान! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है।

      इससे प्रजा अत्यंत दु:खी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है।

      जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया?

      इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका।

      तब अंगिरा ऋषि ने राजा से कहा कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो।

      व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों का नाश करने वाला है।

      इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करोगे तो तुम्हें फल अवश्य प्राप्त होगा।

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      मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आये और उसने विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया।

      उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा में पहले की तरह सुख समृद्धि वापिस लौट आई।

      अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए।

      यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है।

      इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता हैं।

      देवशयनी एकादशी का वैज्ञानिक महत्व

      देवशयनी एकादशी के दिन से पवित्र चातुर्मास की शुरूआत होती है।

      वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो चातुर्मास की शुरूआत के साथ ही भारत के विभिन्न हिस्सों में मानसून सक्रिय हो जाता है।

      ज्योतिषीय मान्यताओें के अनुसार इन महीनों में वातावरण में नमी के बढ़ने के कारण कई तरह के सूक्ष्म जीव-जंतुओं का जन्म होता है और वे मानव शरीर को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

      हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने इन चार महीनों के लिए कुछ तरह के धार्मिक नियमों को सूचीबद्ध किया था, और लोगों को इनका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया।

      इस एकादशी का वैज्ञानिक महत्व होने के साथ ही ज्योतिषीय महत्व भी है। 

      देवशयनी एकादशी का ज्योतिषीय महत्व 

      देवशयनी एकादशी के दिन से देवउठनी ग्यारस तक हर प्रकार के मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध होता है।

      इस दौरान धार्मिक भजन-कीर्तन और प्रभु श्री विष्णु-लक्ष्मी, तुलसी समेत शिव आराधना का विशेष महत्व है।

      चातुर्मास के दौरान हमारी विष्णु पूजा, लक्ष्मी पूजा या शिव पूजा का लाभ उठाने के लिए अभी संपर्क करें।

      चातुर्मास के दौरान रुद्राक्ष धारण करने का भी बेहद महत्व है, इस दौरान आप 10 मुखी, 7 मुखी या 19 मुखी रूद्राक्ष धारण कर सकते हैंं।

      उपरोक्त रूद्राक्ष पर प्रभु श्री कृष्ण, लक्ष्मी और नारायण का स्वामित्व है।

      देवशयनी एकादशी 2023 से इन रुद्राक्षों को धारण करने पर आपके जीवन के कष्टों का निवारण होगा और इन रूद्राक्षों की सकारात्मक ऊर्जा आपको आत्मबल प्रदान करेगी और आपके अंतःकरण को पवित्र करेगी।

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