More
    33.1 C
    Delhi
    Friday, May 3, 2024
    More

      || मेरे मन की बात | पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता ||

      मेरे मन की बात

      भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है ।

      दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,
      अगर सबसे कम बोल-चाल है,
      तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में ।

      एक समय तक दोनों अंजान होते हैं

      एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से फिर धीरे से अहसास होता है हमेशा के लिए बिछड़ने का ।

      जब लड़का,

      अपनी जवानी पार कर अगले पड़ाव पर चढ़ता है तो यहाँ इशारों से बाते होने लगती हैं या फिर इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाने वाली माँ के माध्यम से ।

      पिता अक्सर उसकी माँ से कहा करते हैं जा “उससे कह देना”
      और
      पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहा करता है “पापा से पूछ लो ना”

      इसी दोनों धूरियों के बीच घूमती रहती है माँ ।

      जब एक कहीं होता है तो दूसरा नहीं होने की कोशिश करता है,
      शायद पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।
      जबकि
      वो डर नज़दीकी का नहीं है, डर है उसके बाद बिछड़ने का ।

      ALSO READ  Motherhood : The Best Explanations of the Concept of GOD

      भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को कहा हो कि बेटा मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।

      पिता की अनंत गालियों का उत्तराधिकारी भी वही होता है,
      क्योंकि पिता हर पल ज़िन्दगी में अपने बेटे को अभिमन्यु सा पाता है ।

      पिता समझता है,
      कि इसे सम्भलना होगा,
      इसे मजबूत बनना होगा, ताकि ज़िम्मेदारियो का बोझ इसका वध नहीं कर सके ।
      पिता सोंचता है,
      जब मैं चला जाऊँगा,
      इसकी माँ भी चली जाएगी,
      बेटियाँ अपने घर चली जायँगी,
      रह जाएगा सिर्फ ये,
      इसे हर-दम हर-कदम परिवार के लिए,
      आजीविका के लिए,
      बहु के लिए,
      अपने बच्चों के लिए चुनौतियों से,
      सामाजिक जटिलताओं से लड़ना होगा ।

      पिता जानता है

      हर बात घर पर नहीं बताई जा सकती,
      इसलिए इसे खामोशी में ग़म छुपाने सीखने होंगे ।

      परिवार के विरुद्ध खड़ी हर विशालकाय मुसीबत को अपने हौंसले से छोटा करना होगा।
      ना भी कर सके तो ख़ुद का वध करना होगा ।

      इसलिए वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता,

      पिता जानता है
      प्रेम कमज़ोर बनाता है ।
      फिर कई दफ़ा उसका प्रेम झल्लाहट या गुस्सा बनकर निकलता है ।

      वो अपने बेटे की
      कमियों मात्र के लिए नहीं है,
      वो झल्लाहट है जल्द निकलते समय के लिए,
      वो जानता है उसकी मौजूदगी की अनिश्चितताओ को ।

      पिता चाहता है कि

      पुत्र जल्द से जल्द सीख ले,
      वो गलतियाँ करना बंद करे,
      क्योंकि गलतियां सभी की माफ़ हैं पर मुखिया की गलतियां माफ़ नहीं होती,

      यहाँ मुखिया का वध सबसे पहले होता है ।

      फिर

      एक समय आता है जबकि
      पिता और बेटे दोनों को अपनी बढ़ती उम्र का एहसास होने लगता है, बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,
      कड़ी कमज़ोर होने लगती है ।

      ALSO READ  || ट्रेन 18 | Train 18 ||

      पिता का सीखा देने की लालसा और बेटे की उस भावना को नहीं समझ पाने के कारण,

      वो सौम्यता भी खो देते हैं
      यही वो समय होता है जब
      बेटे को लगता है कि उसका पिता ग़लत है,
      बस इसी समय को समझदारी से निकालना होता है,
      वरना होता कुछ नहीं है,
      बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर जल्द बीमारियों को घेर लेता है ।

      फिर

      सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखी पर पीछे,

      रात भर से जागा पिता नहीं दिखा,
      पिता की उम्र और झुर्रियां बढ़ती जाती है ।

      ये समय चक्र है ,
      जो बूढ़ा होता शरीर है बाप के रूप में उसे एक और बूढ़ा शरीर झांक रहा है आसमान से,
      जो इस बूढ़े होते शरीर का बाप है,
      कब समझेंगे बेटे,
      अब
      कब समझेंगे बाप,
      कब समझेगी दुनिया,
      ये इतने भी मजबूत नहीं,
      पता है क्या होता है उस आख़िरी मुलाकात में,

      जब,

      जिन हाथों की उंगलियां पकड़ पिता ने चलना सिखाया था वही हाथ,
      लकड़ी के ढेर पर पढ़े नग्न पिता को लकड़ियों से ढकते हैं,
      उसे तेल से भिगोते हैं, उसे जलाते हैं,

      ये कोई पुरुषवादी समाज की चाल नहीं थी,

      ये सौभाग्य नहीं है,
      यही बेटा होने का सबसे बड़ा अभिशाप भी है ।

      ये होता है,
      हो रहा है,
      होता चला जाएगा ।

      जो नहीं हो रहा,

      और जो हो सकता है,
      वो ये की हम जल्द से जल्द कह दें,
      हम आपस में कितनी प्यार करते हैं.

      हे मेरे महान पिता.!

      मेरे गौरव
      मेरे आदर्श
      मेरा संस्कार मेरा स्वाभिमान
      मेरा अस्तित्व…
      मैं न तो इस क्रूर समय की गति को समझ पाया
      और न ही आपको अपने दिल की बात आपको कह पाया।

      ALSO READ  || है क्या माँ ||

      पर हा इंतज़ार है
      ये भी पता है कि आप आओगे मेरे पास ही
      कुछ काम अधूरे है कुछ ख्वाब अधूरे है
      उनको पूरा करने
      क्यों कि अब नाम और काम आपके ही अच्छे
      लगते है
      में बस आपका सहयोगी ही ठीक था और हमेशा रहूंगा
      बस थोड़े दिन की बात है फिर वही 2 लोग एक साथ होंगे
      साथ चलेंगे
      बस इसी बात का इंतज़ार है।

      मेरे मन की बात

      लेखक
      राहुल राम द्विवेदी
      ” RRD “

      Related Articles

      1 COMMENT

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,757FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles