More
    37.8 C
    Delhi
    Tuesday, May 7, 2024
    More

      मासिक दुर्गा अष्टमी आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      हिन्दू धर्म में अष्टमी का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा व व्रत किया जाता है। हर हिन्दू मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत किया जाता है।

      इस व्रत का देवी दुर्गा का मासिक व्रत भी कहा जाता है। हिन्दू कैलेण्डर में अष्टमी दो बार आती है एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में। शुक्ल पक्ष की अष्टमी में देवी दुर्गा का व्रत किया जाता है।

      अश्विन मास में आने वाली शारदीय नवरात्रि के उत्सव के दौरान पड़ने वाली अष्टमी को और चैत्र नवरात्रि के उत्सव के दौरान पड़ने वाली अष्टमी को महाष्टमी व दुर्गाष्टमी कहा जाता है।

      जो देवी दुर्गा के भक्तों के महत्वपूर्ण दिन होता है। अन्य त्यौहार जो अष्टमी तिथि में आते हैं जैसे शीतला अष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, अहोई अष्टमी, गोपाष्टमी।

      मासिक दुर्गा अष्टमी की तिथि
      • अश्विना, कृष्ण पक्ष अष्टमी (मध्य अष्टमी) : रविवार, 18 सितंबर 2022
      • अष्टमी प्रारंभ तिथि : 17 सितंबर 2022 दोपहर 02:14 बजे
      • अष्टमी समाप्ति तिथि : 18 सितंबर 2022 शाम 04:33 बजे
      मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि

      इस दिन सुबह उठकर जल्गी स्नान कर लें,

      • फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
      • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
      • मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
      • मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
      • धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
      • मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
      ALSO READ  Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary : A Great Freedom Fighter
      मासिक दुर्गाष्टमी की कथा 

      पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थी। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की।

      महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा।

      ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था। उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया लेकिन, ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है। इसलिए, अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं होता है।

      जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मानने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, अगर मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिए कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो।

      इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

      जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही उसका अन्याय भी बढ़ गया।

      मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया। जिससे धरती चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी।

      ALSO READ  Do You Know Andriod 11 New Features?

      उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया। जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया।

      महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता, त्रिदेवों के पास सहायता मांगने के लिए पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी।

      जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया।

      उसी तेज से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

      त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया।

      माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया।

      अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया। जिसके बाद से ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

      मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया।

      ALSO READ  Fact Check : CBSE Issues Clarification Regarding Class 9th Chapter of 'Dating & Relationships' | Details Inside

      इस दौरान ये भी माना जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिसके दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धककर देवी को छलने की कई बार कोशिश की।

      लेकिन, उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया।

      अंत में इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई। माना जाता है कि जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी  का पर्व प्रारम्भ हुआ।

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,789FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles