More
    27.8 C
    Delhi
    Saturday, April 27, 2024
    More

      इसीलिए बीच से बंटा है केला का पत्ता | पढ़े रोचक कथा | 2YoDo विशेष

      केले के पत्ते के बंटवारे की यह कथा भगवान श्रीराम के लिए हनुमान जी की भक्ति का अनुपम उदाहरण है।

      केले के पत्ते के बंटवारे की यह कथा भगवान श्रीराम के लिए हनुमान जी की भक्ति का अनुपम उदाहरण है। भगवान राम लंका विजय के बाद हनुमान जी और पूरी वानर सेना के साथ अयोध्या पहुंचे।

      वहां इस ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ, जिसमें सारी वानर सेना आमंत्रित थी। सुग्रीवजी ने वानरों को समझाया- यहां हम मेहमान हैं।

      सबको यहां बहुत शिष्टता दिखानी है, ताकि वानरों को लोग अभद्र न कहें।

      वानरों ने अपनी जाति का मान रखने के लिए सतर्क रहने का वचन दिया।

      एक वानर ने सुझाव दिया :

      ‘वैसे तो हम शिष्टाचार का पूरा प्रयास करेंगे, लेकिन हमसे कोई चूक न होने पावे, इसके लिए हमें मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी। आप किसी को हमारा अगुवा बना दें, जो हमें मार्गदर्शन देता रहे। हम पर नजर रखे और यदि वानर आपस में लड़ने-भिड़ने लगें, तो उन्हें रोक सके।’

      हनुमानजी अगुआ बने। भोज के दिन हनुमानजी सबके बैठने आदि का इंतजाम देख रहे थे। व्यवस्था सुचारु बनाने के बाद वह श्रीराम के पास पहुंचे।

      श्रीराम ने हनुमानजी को आत्मीयता से कहा, ‘हनुमानजी आप भी मेरे साथ बैठकर भोजन करें।’ एक तरफ तो प्रभु की इच्छा थी।

      दूसरी तरफ यह विचार कि संग भोजन करने से कहीं प्रभु के मान की हानि न हो। हनुमानजी धर्मसंकट में पड़ गए। वह अपने प्रभु के बराबर बैठना नहीं चाहते थे।

      प्रभु के भोजन के उपरांत ही वह प्रसाद ग्रहण करना चाहते थे।

      ALSO READ  || ध्यान, धारणा, समाधि ||

      इसके अलावा बैठने का कोई स्थान शेष नहीं बचा था और न ही भोजन के लिए थाली के रूप में प्रयुक्त होने वाला केले का पत्ता बचा था, जिसमें भोजन परोसा जाए।

      प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी के मन की बात भांप ली।

      उन्होंने पृथ्वी को आदेश दिया कि वह उनके बगल में हनुमानजी के बैठने भर भूमि बढ़ा दें। प्रभु ने स्थान तो बना दिया, पर एक और केले का पत्ता नहीं बनाया।

      वह हनुमानजी से बोले, ‘आप मुझे पुत्र समान प्रिय हैं। आप मेरी ही थाली (केले का पत्ता) में भोजन करें।’

      इस पर श्री हनुमान जी बोले, ‘प्रभु मुझे कभी भी आपके बराबर होने की अभिलाषा नहीं रही।

      जो सुख सेवक बनकर मिलता है, वह बराबरी में नहीं मिलेगा।

      इसलिए आपकी थाल में खा ही नहीं सकता।’

      श्रीराम ने समस्त अयोध्यावासियों के समक्ष वानर जाति का सम्मान बढ़ाने के लिए कहा, ‘हनुमान, मेरे हृदय में बसते हैं।

      हनुमान की आराधना का अर्थ है स्वयं मेरी आराधना।

      यदि कोई मेरी आराधना करता है, लेकिन हनुमान की नहीं, तो वह पूजा पूर्ण नहीं होगी।’

      फिर श्रीराम ने अपने दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के बीचोंबीच एक रेखा खींच दी, जिससे वह पत्ता जुड़ा भी रहा और उसके दो भाग भी हो गए।

      इस तरह भक्त और भगवान दोनों के भाव रह गए।

      श्रीराम की कृपा से केले का पत्ता दो भाग में बंट गया।

      भोजन परोसने के लिए केले के पत्ते को सबसे शुद्ध माना जाता है।

      शुभ कार्यों में देवों को भोग लगाने में आज भी केले के पत्ते का प्रयोग होता है।

      ALSO READ  छोटा न समझें किसी भी काम को | RRD | 2YoDo विशेष

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,747FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles