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      विनायक चतुर्थी आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने में दो चतुर्थी पड़ती है। महीने में आने वाली इन दिनों की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में पूजा जाता है। हिंदू संस्कृति में किसी भी कार्य की सफलता हेतु सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। 

      कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या वरद चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश को चतुर्थी तिथि बेहद प्रिय है। इसीलिए चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन गणेश पूजा करने से से सुख, समृद्धि और यश प्राप्त होता है। गणपति हमें सभी संकट से दूर रखते हैं। 

      विनायक चतुर्थी तिथि

      28th अक्टूबर सुबह 10:34 बजे – 29th अक्टूबर सुबह 8:13 बजे।

      विनायक चतुर्थी का महत्व

      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की पूजा करने से कार्यों में किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं आती है। इसलिए गणपति महाराज को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है।

      विनायक चतुर्थी की पूजा विधि

      विनायक चतुर्थी पूजा शुरू करने से पहले नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पवित्र आसन पर बैठना चाहिए। इसके अलावा सभी पूजन सामग्री पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें। आपको बता दें, भगवान श्रीगेश को तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर चढ़ाना चाहिए।

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      श्री गणेश भगवान को मोदक बहुत ही प्रिय है, इसलिए देशी घी से बने मोदक का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए। विनायक चतुर्थी व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध और गुस्सा नहीं करना चाहिए। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है।

      विनायक चतुर्थी की पूजा सामग्री

      विनायक चतुर्थी पर पूजा से पहले इन सामग्रियों को एकत्रित कर लें। इसमें पूजा के लिए लकड़ी की चौकी, लाल कपड़ा, गणेश प्रतिमा, कलश, पंचामृत, रोली, अक्षत्, कलावा, जनेऊ, गंगाजल, इलाइची, लौंग, चांदी का वर्क, नारियल, सुपारी, पंचमेवा, घी, मोदक और कपूर। विनायक चतुर्थी व्रत से प्रभु की कृपा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

      विनायक चतुर्थी की कथा 

      पौराणिक कथा के अनुसार एकबार माता पार्वती एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जान फूंकती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। 

      कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक उन्हें रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी एक नहीं सुनता है। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।

      इस घटना का पता जब माता पार्वती को हुआ तो वह स्नान करके कंदरा से बाहर आती हैं और देखती हैं कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है। उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ है। यह दृष्य देखकर माता क्रोधित होती हैं। जिसे देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव अपने गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का सिर ले आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो। शिवगण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिवजी से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि आज से वह प्रथम पूज्य हैं।

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