कुछ लोगों ने अपने बड़े बुजुर्ग या पंडितों से पैरों के तांबे, चांदी, सोने या लोहे के होने की बात सुनी होगी। इसका मतलब आपकी कुंडली से है। कुंडली में लग्न से चंद्रमा किस भाव में है उससे पाये का पता चलता है। मनुष्य की कुंडली में 12 भाव होते हैं जिन्हें चार भागों में बांटा गया है।
प्रत्येक भाव को पाया, पाद या पैर कहते हैं। ये चार पाये हैं सोने का पाया, चांदी का पाया, तांबे का पाया और लोहे का पाया। इन्हीं पायों में से एक पाया किसी ना किसी व्यक्ति का होता है।
चांदी का पाया
जिस व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा दूसरे, पांचवे और नौवें घर में हो तो ऐसे लोगों का जन्म चांदी के पाए में माना जाता है।
इस पाए में जन्म लेने वाले लोग काफी भाग्यशाली होते हैं। कहा जाता है ऐसे लोग अपने साथ-साथ घरवालों के लिए भी काफी लकी साबित होते हैं।
इनके घर में जन्म लेते ही परिवार का मान-सम्मान बढ़ने लगता है और परिवार के लोगों की तरक्की होती है।
तांबे का पाया
इसे पाये को दूसरे नंबर का श्रेष्ठ माना गया है।
जब किसी बालक के जन्म के समय चंद्रमा तीसरे, सांतवे और दसवें भाग में हो तब उसे तांबे का पाया माना जाता है।
इस पाये में जन्मा बच्चा पिता के लिए काफी भाग्यशाली होता है।
इसके घर में आने से घर की सुख सुविधा में वृद्धि होने लगती है।
सोने का पाया
जन्म लग्न से चंद्रमा यदि पहले, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो उसे सोने का पाया कहा जाता है।
इस पाये में जन्म लेने वाले लोगों को सुख-सुविधा बड़ी ही कठिनाईयों से मिलती है।
ऐसे लोग रोग की चपेट में भी बहुत जल्दी आ जाते हैं।
इन लोगों के लिए सोने का दान करना अच्छा माना गया है।
लोहे का पाया
इस पाये को इतना अच्छा नहीं माना गया है।
जब चंद्रमा चौथे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो ऐसे बच्चे का जन्म लोहे के पाये में माना जाता है।
ऐसे लोगों के जीवन में काफी संघर्ष होता है।
पारिवार में कोई ना कोई परेशानी आने लगती है।
खासकर पिता के लिए ऐसे लोग काफी कष्टदायक साबित होते हैं।