More
    34 C
    Delhi
    Friday, April 26, 2024
    More

      ज्योतिष में दशाओं का महत्व | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      ज्योतिष में दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है और व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में यह अपना विशेष प्रभाव डालती हैं। यह दशाएं ग्रहों द्वारा गत जन्म के कर्मफलों को इस जन्म में दर्शाने का माध्यम है। महादशाओं के गणना की पद्धति में नक्षत्रों पर आधारित दशा पद्धतियाँ अधिक लोकप्रिय हैं।

      वेदांग ज्योतिष में चंद्रमा जिस नक्षत्र में उस दिन होते हैं वह उस दिन का नक्षत्र कहलाता है व उस नक्षत्र का जो स्वामी ग्रह कहा गया है, उसकी महादशा जन्म के समय मानी जाती है।

      तदोपरांत क्रम अनुसार प्रत्येक नक्षत्र या ग्रह की महादशा जीवन में आती रहती है।

      दशा क्रम में सबसे पहले विंशोत्तरी दशा का आगमन होता है और इसी के भितर अन्तर दशा, प्रत्यन्तर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशाएं आती हैं।

      प्रत्येक ग्रह महादशा के काल में सभी ग्रह अपनी-अपनी अंतर्दशा लेकर आते हैं। इसमें प्राण दशा सबसे कम अवधि की होती है और महादशा सबसे अधिक अवधि की मानी जाती है।

      महादशाओं का चक्र 120 वर्ष में पूरा होता है। इन दशाओं में पहली दशा तो जन्म नक्षत्र पर आधारित है।

      कौन सी महादशा पहले मिलेगी यह जन्म समय चंद्रमा जिस नक्षर में होता है उस नक्षत्र के स्वामी ग्रह से जतक की महादशा आरंभ होती है।

      दशाओं के सभी काल क्रम में आपको सभी कुछ मिलता है।

      जन्म में अगर कोई दशा चल रही है तो यह कतई नहीं माना जाना चाहिए कि उस ग्रह से संबंधित समस्त कर्मो का फल मिल चुका है बल्कि यह संभव है कि संपूर्ण कर्मो का केवल कुछ प्रतिशत ही उस दशा में मिला होगा।

      दशाओं का प्रभाव 

      ज्योतिषी के अनुसार सभी ग्रह अपनी दशा-अन्तर्दशा में सभी प्रकार का फल प्रदान करते हैं।

      ALSO READ  राशिफल व पंचांग | 24th सितम्बर 2023

      ग्रह सर्वशक्ति संपन्न हैं और अच्छा-बुरा कोई भी फल दे सकते हैं।

      यह सत्य है कि वे अपनी दशा में आकर ही अपने संपूर्ण अच्छे-बुरे फलों का दर्शन कराती हैं।

      महादशा शब्द का अर्थ है वह विशेष समय जिसमें कोई ग्रह अपनी प्रबलतम अवस्था में होता है और कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है।

      ग्रहों की महादशा का समय निम्नानुसार है। सूर्य- 6 वर्ष,  चन्द्र-10 वर्ष,  मंगल- 7 वर्ष, राहु- 18 वर्ष,  गुरु- 16 वर्ष,  शनि- 19 वर्ष,  बुध- 17वर्ष,  केतु- 7 वर्ष और शुक्र- 20 वर्ष की होती है।

      इन वर्षों में मुख्य ग्रहों की महादशा में अन्य ग्रहों की दशाएं आती हैं, जिसे अन्तर्दशा कहा जाता है। मुख्य ग्रह के साथ अन्तर्दशा के स्वामी ग्रह का भी प्रभाव फल का अनुभव होता है।

      जिस ग्रह की महादशा होगी, उसमे उसी ग्रह की अन्तर्दशा पहले आएगी अधिक सूक्ष्म गणना के लिए अन्तर्दशा में उन्ही ग्रहों की प्रत्यंतर दशा भी निकली जाती है, जो इसी क्रम से चलती है।

      इससे अच्छी-बुरी घटनाओं का पता लगाया जा सकता है।

      किसी ग्रह की महादशा में उसके शत्रु ग्रह की, पाप ग्रह की और नीचस्थ ग्रह की अन्तर्दशा अशुभ होती है।

      शुभ ग्रह में शुभ ग्रह की अन्तर्दशा अच्छा फल देती है।

      स्वग्रह, मूल त्रिकण या उच्च के ग्रह की दशा शुभ मानी जाती होती है।

      वैदिक ज्योतिष में अनेक दशाओं का वर्णन किया गया हैं परन्तु सरल, लोकप्रिय, सटीक एवं सर्वग्राह्य विंशोत्तरी दशा ही है।

      सूर्य आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल बल का, बुध बुद्धि का, गुरु जीव का, शुक्र स्त्री का और शनि आयु का कारक है।

      ALSO READ  मासिक शिवरात्रि आज | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      अत: इनकी महादशाओं का फलादेश देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए फलादेश में परिस्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है।

      जन्म से मृत्यु तक ग्रहों के प्रभाव से विभिन्न प्रकार की सुखद एवं दु:खद घटनाओं से प्रभावित होते है।

      ग्रह उच्च राशि में हो तो नाम, यश प्राप्त होता है तथा ग्रहों के अशुभ होने पर कष्ट प्राप्त होता है।

      जन्म नक्षत्र से दशा स्वामी किस नक्षत्र में है ये देखना आवश्यक है।

      यदि वह अच्छी स्थिति में मित्र या अतिमित्र में है तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,749FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles