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      आखिर क्यों एकादशी के दिन चावल खाने की है मनाही | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      हिंदू धर्म में एकादशी का काफी अधिक महत्व है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत में विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखा जाता है। साल में 24 एकादशी पड़ती है। ऐसे में हर मास में 2 एकादशी पड़ती है पहली कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से सभी दुखों, कष्टों और पापों से मुक्ति मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

      एकादशी के दिन के कुछ नियम है जिन्हें जरूर पालन करना चाहिए। ऐसा ही एक नियम है कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाने चाहिए। जानिए इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण।

      चावल न खाने का धार्मिक कारण

      पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि मेधा से मां शक्ति के क्रोध से बचने के लिए धरती में अपने शरीर का त्याग कर दिया था। कहा जाता है कि जिस दिन उन्होंने अपना शरीर त्यागा उस दिन एकादशी थी।

      जब महर्षि ने अपना शरीर त्याग दिया तो वह चावल और जौ के रूप में धरती में जन्म लिया। इसी कारण चावल और जौ को जीव के रूप में माना जाता है। एकादशी के दिन इनका सेवन करना यानी महर्षि मेधा के खून और रक्त का सेवन करने के बराबर है।

      चावल न खाने का वैज्ञानिक कारण

      एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। इसके अनुसार, चावल में अधिक मात्रा में पानी पाया जाता है। ऐसे में पानी में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है।

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      जब व्यक्ति एकादशी के दिन चावल का सेवन करता है, तो उसके शरीर में अधिक मात्रा में पानी हो जाता है। ऐसे में उसका मन चंचल और विचलित होने लगता है। ऐसे में उसे अपना व्रत पूर्ण करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

      रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है

      धार्मिक कथाओं के अनुसार जो लोग एकादशी के दिन चावल उन्हें अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है। ऐसा भी माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल खाना अखाद्य पदार्थ खाने के बराबर माना जाता है जिससे मनुष्य को बुरा फल मिलता है।

      पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया था। उनके अंश पृथ्वी में समा गए और बाद में उसी स्थान पर चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए।

      इस कारण चावल और जौ को जीव माना जाता है। कथा के अनुसार जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया था, उस दिन एकादशी तिथि थी।

      इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने के बराबर है।

      मन विचलित और चंचल होता है

      इसके अलावा एकादशी के दिन चावल को वर्जित मानने के पीछे एक और कारण है। माना जाता है कि चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है और जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है।

      चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है जिससे व्रत पूरा करने में बाधा आती है। इसलिए एकादशी के दिन चावल और जौ से बनी चीजें खाना वर्जित माना गया है।

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      शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन सात्विकता का पालन करना चाहिए अर्थात इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा झूठ, चोरी, ठगी जैसे बुरे कर्मों से बचना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।

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