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      || उद्यानों के प्रति कर्तव्य ||

      उद्यानों के प्रति कर्तव्य

      मन बहलाने हम जाते,बहलाते मन मेहमानों का,
      साफ-सफाई भी अपना कर्तव्य है इन उद्यानों का ।

      खाते पीते और कचरा फैला देते जो यहाँ वहाँ,
      उन्हें टोककर करना है सुधार हमें नादानों का ।

      क्यारी-क्यारी फूल खिले जो कोमल और सुगन्धित भी,
      ध्यान रखें मन ना ललचाये बच्चों और शैतानों का ।

      ल भी मीठे हो सकते हैं उन पर न ललचाये मन,
      देख-देख आनन्दित होवें यही कथन विद्वानों का ।

      हो सकता है पानी के झरनों फव्वारों का प्रबंध,
      झरनों की बूँदों से कर लें मेल सभी अरमानों का ।

      जितना भी हो सके खुशी और आनन्द सब लूटो किन्तु,
      वृक्ष का भी नुकसान किये बिन लौटें काम महानों का

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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