सावन माह की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। हरियाली अमावस्या को बहुत ही शुभ माना जाता है। सामान्यतः हरियाली अमावस्या हरियाली तीज से तीन दिन पहले आती है। इस दिन पेड़-पौधे लगाने का विशेष महत्व है।
सनातन धर्म में सावन के महीने को बहुत ही पवित्र माना गया है।
श्रावण मास में महादेव के पूजन का विशेष महत्व है।
सावन की हरियाली अमावस्या 17 जुलाई 2023 को है।
इस दिन सोमवार होने से ये सोमवती अमावस्या कहलाएगी।
प्राचीन काल से ही इस दिन पेड़-पौधे लगाने की परंपरा चली आ रही है।
हरियाली अमावस्या का क्या है महत्व
हरियाली अमावस्या के दिन नदियों या जलाशयों के किनारे स्नान के बाद भगवान की पूजा-अर्चना करने के बाद अगर शुभ मुहूर्त में वृक्षों को रोपा जाता है तो व्यक्ति को इसका विशेष लाभ मिलता है।
यही नहीं मथुरा एवं वृन्दावन में, हरियाली अमावस्या के अवसर पर विशेष दर्शन का आयोजन किया जाता है।
भगवान कृष्ण के इन विशेष दर्शन करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्त होती है।
इस दिन मंदिरों में हजारों की संख्या में लोग भगवान कृष्ण के दर्शनों के लिए मथुरा में द्वारकाधीश मंदिर और वृंदावन में बांके बिहारी मन्दिर जाते हैं।
हरियाली अमावस्या के दिन लगाएं ये पौधे
हरियाली अमावस्या के दिन अगर कोई व्यक्ति कुछ विशेष वृक्षों को रोपकर उनकी देखरेख करने का प्रण लेता है तो उसके जीवन में समृद्धि बनी रहती है।
सावन में हरियाली अमावस्या पर शिव-पार्वती पूजन के साथ ही तुलसी, आम, बरगद, नीम आदि के पौधे रोपने से देव और पितृ दोनों प्रसन्न होते हैं।
शास्त्रों में विशेषकर आम, आंवला, पीपल, वट वृक्ष और नीम के पौधों को रोपने का विशेष महत्व बताया गया है।
हरियाली अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि 16 जुलाई 2023 को सुबह 10 बजकर 08 मिनट से शुरू हो रही है।
इसका समापन 18 जुलाई 2023 को सुबह 12 बजकर 01 मिनट पर होगा।
अतः 17 जुलाई को सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी।
हरियाली अमावस्या के दिन क्या करें
हरियाली अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित है।
इस दिन भक्त जल्दी उठते हैं और स्नान करते हैं।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है, इसी के साथ ब्राह्मणों के लिए विशेष भोजन तैयार किया जाता है।
भक्त भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
शिव पूजा धन और समृद्धि लाती है।
भक्त भगवान शिव को समर्पित मंत्रों का पाठ करते हैं और भजन गाते हैं।
भगवान शिव के मंदिरों में विशेष दर्शन और अनुष्ठान होते हैं व भक्त व्रत का पालन करते हुए श्री हरि व शिव के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
पूजा की रस्में पूरी करने के बाद ही भोजन किया जाता है।
हरियाली अमावस्या पर भव्य मेलों का भी आयोजन किया जाता है।
महिलाएं अपने पति की सलामती की दुआ करती हैं।
हरियाली अमावस्या की पूजा विधि और कथा
हरियाली अमावस्या पर सुबह उठकर पूरे विधि-विधान से माता पार्वती एवं भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए।
सुहागिन महिलाओं को सिंदूर लेकर माता पार्वती की पूजा करना चाहिए और सुहाग सामग्री बांटना चाहिए।
ऐसा मानना है कि हरी चूड़िया, सिंदूर, बिंदी बांटने से सुहाग की आयु लंबी होती है और साथ ही घर में खुशहाली आती है।
अच्छे भाग्य के उद्देश्य से पुरुष भी चूड़ियां, मिठाई आदि सुहागन स्त्रियों को भेट कर सकते हैं।
लेकिन यह कार्य दोपहर से पहले कर लेना चाहिए।
हरियाली अमावस्या के दिन भक्तों को पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करना चाहिए।
इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते हैं तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाए जाने की परंपरा है।
धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है।
पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है।
आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है।
इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं।
इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। मान्यता है कि जो लोग श्रावण मास की अमावस्या को व्रत करते हैं, उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान करने की भी विशेष परंपरा है।
हरियाली अमावस्या की कथा का भी पूजा में विशेष महत्व है।
अलग-अलग क्षेत्रों में मान्यताओं के अनुसार कथाएं भी अलग-अलग प्रचलित है।
यदि आप व्रत कर रहे हैं, तो कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।