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      || आशु-वाणी | मिटा दो दुश्मन की नापाक कहानी ||

      मिटा दो दुश्मन की नापाक कहानी

      नापाक हरकतें सुनते-सुनते पाक की,
      कान हमारे रहे हैं पाक।
      तुम न जाने किस इन्तजार में,
      रहे हो बगलें झाँक।

      अरे ! कौआ न समझेगा कोयल वाली बानी।
      रक्त हमारा खौल रहा और,
      उबाल मार रहा अन्दर का पानी।
      तुम खाते और खिलाते आये,
      दुश्मन को बिरयानी।
      बार-बार के बम विस्फोटों से,
      हर-हर, बम-बम बोल,
      मिटा दो दुश्मन की नापाक कहानी।

      लेखक
      श्री विनय शंकर दीक्षित
      “आशु”

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