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      || रामायण : श्री राम के पदचिन्ह ||

      नमस्कार मित्रों,

      रामेश्वरम धाम

      रामेश्वरम एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है।

      सुग्रीव की सेना को साथ लेकर श्री राम सीता माता की खोज मे यहा आए। रावण पर आक्रमण करने के लिए समुन्द्र पार करना जरूरी था। राम ने सागर से मार्ग मांगा , परंतु उसने मार्ग नहीं दिया। इस पर भगवान राम को क्रोध आया और उन्होने अग्नि बाण द्वारा सागर को सूखा देने की बात सोची , तब सागर ने ब्रह्मण रूप मे प्रकट होकर उनसे ऐसा न करने को कहा और इसके बाद एक पल निर्माण करने को कहा। श्री राम ने सागर की प्रार्थना को मान लिया और विश्वकर्मा के पुत्र नल-नील को जो महान शिल्पी थे , बुलाया। नल ने अपनी शिल्प -विद्या के प्रबल प्रताप से लकड़ी , पत्थर , जो मिला उसी को पानी पर तैरा दिया और देखते-देखते राम की आज्ञा से सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौड़ा पल तैयार कर दिया।

      श्री राम ने लंका के राजा रावण पर चढ़ाई करने से पहले यहा शंकर भगवान की आराधना पर मंदिर की स्थापना की थी।
      श्री भगवान राम ने जब लंका के राजा रावण का नाश कर दिया तब अगस्त्य आदि ऋषियों ने राम से रावण को मारने का प्रायश्चित करने के लिए कहा, क्योकि रावण ब्रह्मण और ऋषि पुल्स्त्य का नाती था। प्रायश्चित स्वरूप राम को शिव जी का एक ज्योतिर्लिंग स्थापित करना था। श्री राम ने हनुमान से कैलाश जाने को और स्यव शंकर भगवान से ही उनकी कोई उपयुक्त मूर्ति लाने को कहा। हनुमान कैलाश गए , किंतु उन्हे अभिस्ट मूर्ति नहीं मिल सकी , अत: हनुमान जी ने इसके लिए तप सुरू कर दिया।
      इधर हनुमान को अधिक देरी होते देख राम और ऋषियों ने मूर्ति स्थापना का शुभ- मुहूर्त गवाना ठीक नहीं समझा। अत: सीता द्वारा बनवाए गए बालू के शिवलिंग को उन्होने स्वीकार कर लिया और सीता तथा राम ने उस ज्यौतिर्लिंग की ज्येस्ठ , शुक्ला दशमी , बुधवार को, जब चंद्रमा हस्त नक्षत्र मे और सूर्य वृष राशि मे था, स्थापना की , जो रामेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

      स्थापना के बाद हनुमान भी एक शिवलिंग लेकर कैलाश से आ गए। उनको , राम के प्रतीक्षा न करने पर दुख और क्रोध भी हुआ। हनुमान के इस भाव को देखकर राम ने रामेश्वर की बगल मे ही हनुमान द्वारा लाये शिवलिंग की स्थापना करके उन्हे संतुस्ट किया और यह भी घोसणा की कि रामेश्वर की पुजा करने से पहले लोग हनुमान द्वारा लाये हुए शिवलिंग की पुजा करेंगे।

      रामनाथस्वामी मंदिर रामेश्वरम

      पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है रामेश्वरम का रामनाथस्वामी मंदिर रामायण के जितना ही पुराना है। कहा जाता है इसकी शुरुआत तब हुई जब श्रीराम ने, असुरराज रावण के राज्य लंका पर आक्रमण करने का निर्णय लिया था। यह कहा जाता है कि रावण ने रामेश्वरम के समुद्र तट पर रुक कर अपनी प्यास बुझाई थी। परंतु आकाशवाणी से रावण को बताने के बाद भी पानी पीने से पहले रावण ने किसी भी प्रकार की प्रार्थना नहीं की थी

      उसके पश्चात श्रीराम ने रामेश्वरम में एक लिंग की स्थापना की तथा भगवान शिव से रावण के विनाश के लिए आशीर्वाद मांगा।

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      महाकाव्य रामायण के अनुसार एक साधु ने श्रीराम को कहा था कि शिवलिंग स्थापित करने से वहां रावण के वध के पाप से मुक्ति पा सकते हैं इसीलिए श्रीराम ने भगवान अंजनेय को कैलाश पर्वत पर एक लिंग लाने के लिए भेजा परंतु वह लिंग लेकर समय पर वापस ना लौट सके इसीलिए माता सीता ने मिट्टी की मदद से एक लिंग तैयार किया जिसे ‘रामलिंग’ कहा गया।

      जब भगवान अंजनेय वापस लौटे तो उन्हें यह देखकर बहुत दुख लगा। उनके दुख को देखकर भगवान श्रीराम ने उस लिंग का नाम रखा ‘वैश्वलिंगम’। इसी कारण रामनाथस्वामी मंदिर को वैष्णववाद और शैववाद दोनों से जोड़ा गया है।

      धनुष कोड़ी

      हिंदू धर्मग्रथों के अनुसार रावण के भाई विभीषण के अनुरोध पर राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोड़ी पड़ा।

      • एक रेखा में पाई जाने वाली चट्टानों और टापुओं की श्रृंखला प्राचीन सेतु के अवशेष के रूप में दिखाई देती हैं और जिसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है।
      • कहा जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्‍नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर धनुषकोटि में पवित्र स्‍थान के साथ रामेश्‍वरम में पूजा के साथ ही पूर्ण हो
      गंधमादन पर्वत

      रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। मान जाता है हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं।

      सेतुबंध

      रामेश्वरम् शहर और रामनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर इस टापू के उत्तर के छोर पर है। टापू के दक्षिणी कोने में धनुषकोटि नामक तीर्थ है, जहां हिंद महासागर से बंगाल की खाड़ी मिलती है। इसी स्थान को सेतुबंध कहते है। लोगों का विश्वास है कि श्रीराम ने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर जो सेतु बांधा था, वह इसी स्थान से आरंभ हुआ। इस कारण धनुष-कोटि का धार्मिक महत्व बहुत है। यही से कोलम्बो को जहाज जाते थे।

      देवी मंदिर

      रामेश्वर के मंदिर में जिस प्रकार दो शिवलिंग है, उसी प्रकार देवी पार्वती की भी मूर्तियां अलग-अलग स्थापित की गई है। देवी की एक मूर्ति पर्वतवर्द्धिनी कहलाती है, दूसरी विशालाक्षी। मंदिर के पूर्व द्वार के बाहर हनुमान की एक विशाल मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है।

      सेतु माधव

      रामेश्वरम् का मंदिर है तो शिवजी का, परन्तु उसके अंदर कई अन्य मंदिर भी है। सेतुमाधव का कहलानेवाले भगवान विष्णु का मंदिर इनमें प्रमुख है।

      बाईस कुण्ड तिर्थम्

      रामनाथ के मंदिर के अंदर और परिसर में अनेक पवित्र तीर्थ है। ‘कोटि तीर्थ’ जैसे एक दो तालाब भी है। रामनाथ स्वामी मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां स्थित अग्नि तीर्थम में जो भी श्रद्धालु स्नान करते है उनके सारे पाप धुल जाते हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चमत्कारिक गुणों से युक्त माना जाता है। यह 274 पादल पत्र स्थल में से एक है, जहाँ तीनों श्रद्धेय नारायण अप्पर, सुन्दरर और तिरुग्नना सम्बंदर ने अपने गीतों से मंदिर को जागृत किया था। ये शैव, वैष्णव और समर्थ लोगो के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। भारत के तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम द्वीप पर और इसके आसपास कुल मिलाकर 64 तीर्थ है। स्कंद पुराण के अनुसार, इनमें से 24 ही महत्वपूर्ण तीर्थ है, जिसमें 22 तीर्थ तो केवल रामानाथस्वामी मंदिर के भीतर ही है। 22 संख्या को भगवान की 22 तीर तरकशों के समान माना गया है। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम दिया गया है। इन तीर्थो में स्नान करना बड़ा फलदायक पाप-निवारक समझा जाता है, जिसमें श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान करते हैं। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है। रामेश्वरम के इन तीर्थो में नहाना काफी शुभ माना जाता है और इन तीर्थो को भी प्राचीन समय से काफी प्रसिद्ध माना गया है।

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      विल्लीरणि तीर्थ

      रामेश्वरम् के मंदिर के बाहर भी दूर-दूर तक कई तीर्थ है। प्रत्येक तीर्थ के बारें में अलग-अलग कथाएं है। यहां से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है। यह गांव रेल मार्ग के किनारे बसा है। वहां स्टेशन के पास समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। समुद्र के खारे पानी के बीच में से मीठा जल निकलता है, यह बड़े ही अचंभे की बात है। कहा जाता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी न था, इसलिए राम ने अपने धनुष की नोक से यह कुंड खोदा था।

      एकांत राम

      तंगचिडम स्टेशन के पास एक जीर्ण मंदिर है, जिसे ‘एकांत’ राम का मंदिर कहते है। इस मंदिर के अब जीर्ण-शीर्ण अवशेष ही बाकी हैं। रामनवमी के पर्व पर यहां कुछ रौनक रहती है, बाकी दिनों में बिलकुल सूना रहता है। मंदिर के अंदर श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता की बहुत ही सुंदर मूर्तिया है। धुर्नधारी राम की एक मूर्ति ऐसी बनाई गई है, मानो वह हाथ मिलाते हुए कोई गंभीर बात कर रहे हो। दूसरी मूर्ति में राम सीताजी की ओर देखकर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे है। ये दोनों मूर्तियां बड़ी मनोरम है। यहां सागर में लहरें बिल्कुल नहीं आतीं, इसलिए एकदम शांत रहता है। शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है।

      कोद्ण्ड स्वामि मंदिर

      रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर से पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी का मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है।

      सीता कुण्ड

      रामेश्वरम् को घेरे हुए समुद्र में भी कई विशेष स्थान ऐसे बताये जाते है, जहां स्नान करना पाप-मोचक माना जाता है। रामनाथजी के मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने बना हुआ सीताकुंड इनमें मुख्य है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां सीताजी ने अपना सतीत्व सिद्व करने के लिए आग में प्रवेश किया था। सीताजी के ऐसा करते ही आग बुझ गई और अग्नि-कुंड से जल उमड़ आया। वही स्थान अब ‘सीताकुंड’ कहलाता है। यहां पर समुद्र का किनारा आधा गोलाकार है।

      आदि-सेतु

      रामेश्वरम् से सात मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे ‘दर्भशयनम्’ कहते है। यहीं पर राम ने पहले समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था। इस कारण यह स्थान आदि सेतु भी कहलाता है।

      रामसेतु

      पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत में भी श्री राम के नल सेतु का उल्लेख आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। अनेक पुराणों में भी श्रीरामसेतु का विवरण आता है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। यह सेतु तब पांच दिनों में ही बन गया था। इसकी लंबाई 100 योजन व चौड़ाई 10 योजन थी। इसे बनाने में रामायण काल में श्री राम नाम के साथ, उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था।

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      लक्ष्मण तीर्थम

      लक्ष्मण तीर्थ का निर्माण भगवान राम के भाई, भगवान लक्ष्मण की प्रेममयी स्मृति में किया गया था। भगवान लक्ष्मण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण रामेश्वरम में ही किया गया है। भगवान लक्ष्मण की कई अद्भुत मूर्तियों को संगमरमर से उकेरा गया है और मंदिर में भगवान राम और देवी सीता की मूर्ति भी है जो उनके बीच मौजूद एकता की भावना को दर्शाती हैं।

      अग्नि तीर्थम

      अग्नितीर्थम मंदिर परिसर के बाहर स्थित एकमात्र तीर्थम है और भारत में 64 पवित्र स्नान में से एक। संस्कृत भाषा में, अग्नि शब्द का अर्थ है अग्नि; जबकि थेर्थम शब्द का अर्थ पवित्र जल होता है। तीर्थम आने वाले भक्त देवता की पूजा करते हैं और पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।

      इस प्राचीन समुद्र तट के तट पर मृत पूर्वजों के लिए समग्र अनुष्ठान किए जाते हैं। पवित्र स्नान करने के इच्छुक तीर्थयात्रियों को पहले यहां डुबकी लगानी चाहिए और फिर रामेश्वरम मंदिर के अंदर स्नान के लिए आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस समुद्र में स्नान करने से उसके पापों से मुक्ति मिलती है और वह शुद्ध हो जाता है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करना सबसे शुभ माना जाता है। इस स्थान पर रावण को मारने के बाद राम द्वारा अपने पापों के प्रायश्चित की कहानी के बाद, भक्तों ने अग्नितीर्थम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित किया।

      जाड़ा तीर्थं

      रामनाथस्वामी मंदिर से लगभग 3.5 किमी दूर, धनुषकोडी गांव के रास्ते में, जड़ तीर्थम पवित्र तालाब के लिए हिंदू भक्तों के बीच जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब राम रावण को मारने के बाद रामेश्वरम में शिव लिंगम की पूजा करने वाले थे, तो उन्होंने जड़ तीर्थम में अपने जटा (जटा हुआ बाल) धोए।यह एक ऐसा स्थान भी माना जाता है जहां देवी सीता को रावण से बचाने की कोशिश करते हुए एक विशाल पक्षी जटायु की मृत्यु हो गई थी। जड़ तीर्थम के तालाब के बगल में एक मंदिर है। जड़ तीर्थम को भारत में एकमात्र स्थान माना जाता है जहां भगवान कपार्डीश्वर की पूजा की जाती है।

      साक्षी हनुमान मंदिर, रामेश्‍वरम

      रामेश्‍वरम में स्थित साक्षी हनुमान मंदिर, श्री रामनाथेश्‍वर मंदिर से 3 किमी. की दूरी पर स्थित है जो गंधामथाना पर्वथम के रास्‍ते पर पड़ता है। किंवदंतियों के अनुसार, हनुमान जी ने भगवान राम को सूचना दी थी कि माता सीता, रावण के कब्‍जे में है। उन्‍होने इस सूचना को साक्ष्‍य के साथ प्रस्‍तुत किया था, साक्ष्‍य के रूप में उन्‍होने माता सीता की अंगूठी दिखाई थी।

      पंच – मुखी हनुमान मंदिर

      इस मंदिर की अन्‍य विशेषता यह है कि इस मंदिर के बाहर एक तैरता हुआ पत्‍थर भी रखा है। यह पत्‍थर रामसेतू पुल का हिस्‍सा माना जाता है जिसे हनुमान जी और उनकी वानर सेना के द्वारा बनाया गया था। इस पुल की सहायता से ही भगवान राम लंका तक पहुंचे थे और माता सीता को रावण की कैद से छुड़ा पाएं थे।

      पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर में हनुमान जी ने अपने पंच मुख के दर्शन करवाएं थे। हनुमान जी को इस मंदिर में भगवान राम के द्वारा सिंदुर से लेप भी लगाया गया था।

      लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.

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