हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। तदनुसार, सावन माह में 21 जुलाई को अधिक विनायक चतुर्थी है। इस बार 18 जुलाई से लेकर 16 अगस्त तक मलमास है। मलमास के दौरान पड़ने के चलते यह अधिक विनायक चतुर्थी कहलाएगी।
इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धिविनायक भी कहा जाता है।
अतः विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुख, संकट, काल और कष्ट दूर हो जाते हैं।
साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। इसके अलावा, साधक के घर में सुख और समृद्धि आती है।
विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 21 जुलाई को प्रातःकाल 06 बजकर 58 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन सुबह 09 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी।
सनातन धर्म में उदया तिथि मान है।
अतः 21 जुलाई को विनायक चतुर्थी है।
साधक सुबह 10 बजकर 44 मिनट तक भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं।
यह समय पूजा के लिए शुभ है।
साथ ही चौघड़िया तिथि अनुरूप भी पूजा कर सकते हैं।
विनायक चतुर्थी पूजा विधि
विनायक चतुर्थी के दिन ब्रह्म बेला में उठें।
अब भगवान गणेश को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें।
इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई करें साथ ही गंगाजल छिड़ककर नकारात्मक शक्तियों को दूर करें।
नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें।
इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें।
अब पीले रंग का वस्त्र धारण करें।
तदोउपरांत, सूर्य देव को जल अर्पित करें।
इसके बाद पंचोपचार कर भगवान गणेश की पूजा पीले रंग के फूल, फल, हल्दी, चंदन, अक्षत, कुमकुम, दूर्वा और मोदक से करें।
निम्न मंत्र का उच्चारण करें
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
पूजा के समय गणेश चालीसा, गणेश स्त्रोत, स्तुति एवं गणेश कवच का पाठ करें।
अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें।
दिनभर उपवास रखें और संध्याकाल में चंद्र देव की विधिवत पूजा करें।
आरती-अर्चना और दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात, फलाहार करें।
अगले दिन पूजा पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान महादेव नर्मदा नदी के तट पर चौपड़ खेल रहे थे।
खेल में हार जीत का फैसला करने के लिए महादेव ने एक पुतला बना दिया और उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी।
भगवान महादेव ने बालक से कहा कि जीतने पर जीतने पर विजेता का फैसला करे।
महादेव और माता पार्वती ने खेलना शुरू किया और तीनों बाद माता पार्वती जीत गईं।
खेल समाप्त होने के बाद बालक ने महादेव को विजयी घोषित कर दिया।
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और बालक को अपाहिज रहने का शाप दे दिया।
माता पार्वती ने बताया उपाय
इसके बाद माता पार्वती से बालक ने क्षमा मांगी और कहा कि ऐसा भूलवश हो गया है।
जिसके बाद माता पार्वती ने कहा कि शाप तो वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन इसका एक उपाय है।
माता पार्वती ने बालक को उपाय बताते हुए कहा कि भगवान गणेश की पूजा के लिए नाग कन्याएं आएंगी और तुमको उनके कहे अनुसार व्रत करना होगा, जिससे तुमको शाप से मुक्ति मिल जाएगी।
बालक कई सालों तक शाप से जूझता रहा और एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा के लिए आईं।
जिनसे बालक ने गणेश व्रत की विधि पूछी।
बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने वरदान मांगने को कहा।
बालक को मिली शाप से मुक्ति
बालक ने भगवान गणेश से प्रार्थना की और कहा कि, हे विनायक, मुझे इतने शक्ति दें कि मैं पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर जा सकूं।
भगवान गणेश ने बालक को आशीर्वाद दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
इसके बाद बालक ने कैलाश पर्वत पर भगवान महादेव को शाप मुक्त होने की कथा सुनाई।
चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट हो गई थीं।
बालक के बताए अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों का भगवान गणेश का व्रत किया।
व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान महादेव के प्रति नाराजगी खत्म हो गई।
मान्यता है कि भगवान गणेश की जो सच्चे मन से पूजा अर्चना और आराधना करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं।
साथ ही कथा सुनने व पढ़ने मात्र से जीवन में आने वाले सभी विघ्न दूर होते हैं।