पंचांग के पाँच प्रमुख अंग होते हैं- ये हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।
एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण।
प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
तिथि
एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है।
चंद्र मास में ३0 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में 1-14 और फिर पूर्णिमा आती है।
पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि।
कृष्ण पक्ष में 1-14 और फिर अमावस्या आती है।
अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं :
- पूर्णिमा (पूरनमासी),
- प्रतिपदा (पड़वा),
- द्वितीया (दूज),
- तृतीया (तीज),
- चतुर्थी (चौथ),
- पंचमी (पंचमी),
- षष्ठी (छठ),
- सप्तमी (सातम),
- अष्टमी (आठम),
- नवमी (नवमी),
- दशमी (दशम),
- एकादशी (ग्यारस),
- द्वादशी (बारस),
- त्रयोदशी (तेरस),
- चतुर्दशी (चौदस),
- अमावस्या (अमावस).
वार
एक सप्ताह में सात दिन होते हैं :
- रविवार,
- सोमवार,
- मंगलवार,
- बुधवार,
- गुरुवार,
- शुक्रवार,
- शनिवार.
नक्षत्र
आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं।
मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं।
’योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है।
चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है।
नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं।
योग
योग 27 प्रकार के होते हैं।
सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं।
दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं :
- विष्कुम्भ,
- प्रीति,
- आयुष्मान,
- सौभाग्य,
- शोभन,
- अतिगण्ड,
- सुकर्मा,
- धृति,
- शूल,
- गण्ड,
- वृद्धि,
- ध्रुव,
- व्याघात,
- हर्षण,
- वज्र,
- सिद्धि,
- व्यातीपात,
- वरीयान,
- परिघ,
- शिव,
- सिद्ध,
- साध्य,
- शुभ,
- शुक्ल,
- ब्रह्म,
- इन्द्र,
- वैधृति।
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है।
ये अशुभ योग हैं :
- विष्कुम्भ,
- अतिगण्ड,
- शूल,
- गण्ड,
- व्याघात,
- वज्र,
- व्यतीपात,
- परिघ,
- वैधृति।
करण
एक तिथि में दो करण होते हैं, एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में।
कुल 11 करण होते हैं :
- बव,
- बालव,
- कौलव,
- तैतिल,
- गर,
- वणिज,
- विष्टि,
- शकुनि,
- चतुष्पाद,
- नाग,
- किस्तुघ्न।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है।
विष्टि करण को भद्रा कहते हैं।
भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।