योगिनी एकादशी साल की सबसे प्रमुख एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है और यह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इस साल यह व्रत 14 जून बुधवार को रखा जाएगा। इस व्रत के प्रभाव से किसी भी प्रकार के श्राप असर खत्म होकर व्रत करने वालों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।
यह व्रत अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस व्रत को करने से समस्त पापों का अंत होता है।
मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए श्राप का भी निवारण हो जाता है।
इस साल योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून को रखा जाएगा।
योगिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 13 जून मंगलवार को सुबह 9 बजकर 28 मिनट पर आरंभ होगी और यह तिथि 14 जून को सुबह 8 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी।
उदया तिथि की मान्यता के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून को रखा जाएगा और इसका पारण द्वादशी यानी कि 15 जून को होगा।
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
योगिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभफलदायी माना जाता है।
मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से आपके जीवन में आनंद और सुख समृद्धि बढ़ती है।
इस व्रत को करने पर 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है।
इस व्रत करने वाले के लिए मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग सुगम होता है।
इस व्रत को करने वाला व्यक्ति धरती पर सभी प्रकार के सुख भोगता है।
परलोक में भी उसका स्थान बेहतर होता है।
योगिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि
योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून बुधवार को रखा जाएगा।
बुधवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और पीले वस्त्र धारण करें।
लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
उत्तर-पूर्व दिशा की तरफ गाय के घी का दीपक जलाकर रखें।
हल्दी से भगवान को तिलक लगाएं और तुलसी दल चढ़ाएं।
पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं।
योगिनी एकादशी व्रत की कथा पढ़ें और आरती करके पूजा करें।
अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवाकर व्रत का पारण करें।
योगिनी एकादशी व्रत की कथा
मान्यता है कि अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के यहां हेम नामक एक माली रहता था।
माली रोज भगवान शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से फूल लाता था।
एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ समय व्यतीत करने के कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई।
वह दरबार में देर से पहुंचा।
इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया।
श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम जा पहुंचा।
ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया।
तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा।
व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।