नमस्कार मित्रों,
प्राय: लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि ‘हनुमानजी अमर हैं तो अब वे कहां हैं ?’
यहां इस प्रस्तुति में यही बताया गया है कि हनुमानजी किसके आशीर्वाद से चिरंजीवी हुए और अब वे कहां हैं ?
श्रीराम के अनन्य सेवक हनुमानजी अमर चिरंजीवी और सनातन हैं ।
उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है ।
माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं :
(श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)
अर्थात्हे :
पुत्र ! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ ।
श्रीरघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें ।
‘प्रभु कृपा करें’ ऐसा कानों से सुनते ही हनुमान जी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए।
भगवान श्रीरामजी जब अपनी मानव लीला को संवरण कर साकेत जाने लगे, उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा :
इतना कह कर श्रीरामजी ने अपनी मानवी लीला संवरण कर ली ।
हनुमानजी नेत्रों में अश्रु भरकर श्रीसीताराम को बार-बार प्रणाम कर तपस्या के लिए हिमालय चले गए ।
हनुमानजी का इन स्थानों पर है निवास
रामकथा में हनुमानजी का निवास :
श्रीरामजी के साकेत धाम प्रस्थान के बाद हनुमानजी अपने प्रभु के आदेशानुसार उन्हीं के गुणों का कीर्तन एवं श्रवण करते हुए भूतल पर भ्रमण करने लगे ।
हनुमानजी का राम-नाममय विग्रह है ।
उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है।
उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध–सब राम-नाम से बने हैं ।
उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य श्रीराम हैं।
उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है।
जहां भी रामकथा या रामनाम का कीर्तन होता है,
वहां वे गुप्त रूप से सबसे पहले पहुंच जाते हैं ।
दोनों हाथ जोड़कर सिर से लगाये सबसे अंत तक वहां वे खड़े ही रहते हैं ।
प्रेम के कारण उनके नेत्रों से बराबर आंसू झरते रहते हैं ।
(महाराजा रघुराजसिंहजी द्वारा रचित रामरसिकावली, त्रेतायुगखण्ड, प्रथम अध्याय)
किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी का निवास :
किम्पुरुषवर्ष हेमकूट पर्वत के दक्षिण में स्थित है ।
हेमकूट पर्वत हिमालय में तपस्या करने का वह स्थान है, जहां शीघ्र ही सिद्धि मिल जाती है ।
यह गंधर्व और किन्नरों का निवासस्थान है ।
(देवताओं की एक जाति का नाम गन्धर्व है । इनका एक अलग लोक होता है जहां ये निवास करते हैं । ये देवताओं के गायक, नृत्यक और स्तुति पढ़ने वाले होते हैं । गन्धर्वों में तुम्बरु और हाहा-हूहू बहुत प्रसिद्ध हैं। देवर्षि नारद ने गन्धर्वों से ही संगीत सीखा था और इसी कारण वे लोक में हरिगुणगान करते हुए भगवान विष्णु को अति प्रिय हुए ।)
किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी तुम्बुरु आदि गन्धर्वों द्वारा मधुर-मधुर बाजे-बजाते हुए गायी जाने वाली श्रीराम-कथा का श्रवण करते हैं, श्रीराम का मन्त्र जपते और स्तुति करते रहते हैं, उनके नेत्रों से अश्रु झरते रहते हैं ।
गर्गसंहिता के विश्वजित्-खण्ड में लिखा है कि किम्पुरुषवर्ष में श्रीरामचन्द्रजी सीताजी के साथ विराजमान हैं ।
हनुमानजी संगीत के महारथी आर्ष्टिषेण के साथ वहां उनके दर्शन के लिए आया करते हैं ।
अध्यात्म रामायण में भी हनुमानजी का तपस्या के लिए हिमालय (किम्पुरुषवर्ष) में जाकर निवास करने का उल्लेख मिलता है ।
नारदजी ने भी किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी को वन की सामग्री से श्रीराम की मूर्ति का पूजन करते हुए और गंधर्वों के मुख से रामायण का गान सुनते हुए देखा था ।
हनुमानजी ने नारदजी से कहा :
अयोध्या में निवास :
अयोध्या श्रीराम की पुरी है ।
हनुमानजी इस पुरी में नित्य निवास करके अपने आराध्य श्रीराम की सेवा करते हैं ।
अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी हनुमानजी की सेवा की प्रतीक है।
बृहद् ब्रह्मसंहिता के अनुसार श्रीराम के अनन्य सेवक महावीर हनुमान साकेत धाम (अयोध्या) की ईशान दिशा में रक्षक के रूप में सदा विराजमान रहते हैं ।
महाभारत के युद्ध में भी हनुमानजी उपस्थित रहे।
वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठे रहते थे ।
उनके बैठे रहने से अर्जुन के रथ को कोई पीछे नहीं हटा सकता था ।
कई बार उन्होंने अर्जुन की रक्षा भी की।
एक बार हनुमानजी ने भीम, अर्जुन और गरुड़जी को अभिमान करने से बचाया था।
हनुमानजी जीवन्मुक्त हैं, सर्वलोकगामी हैं, वे अपनी इच्छानुसार कभी भी जाकर अपने भक्तों को दर्शन देते रहते हैं।
|| जय हनुमान ||
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.