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    Tuesday, April 30, 2024
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      || नालायक | NALAYAK ||

      नमस्कार मित्रों,

      देर रात अचानक ही पिता जी की तबियत बिगड़ गयी।
      आहट पाते ही उनका नालायक बेटा उनके सामने था।
      माँ ड्राईवर बुलाने की बात कह रही थी, पर उसने सोचा अब इतनी रात को इतना जल्दी ड्राईवर कहाँ आ पायेगा ?

      यह कहते हुये उसने सहज जिद और अपने मजबूत कंधो के सहारे बाऊजी को कार में बिठाया और तेज़ी से हॉस्पिटल की ओर भागा।

      बाउजी दर्द से कराहने के साथ ही उसे डांट भी रहे थे

      “धीरे चला नालायक, एक काम जो इससे ठीक से हो जाए।”

      नालायक बोला

      “आप ज्यादा बातें ना करें बाउजी, बस तेज़ साँसें लेते रहिये, हम हॉस्पिटल पहुँचने वाले हैं।”

      अस्पताल पहुँचकर उन्हे डाक्टरों की निगरानी में सौंप,वो बाहर चहलकदमी करने लगा

      बचपन से आज तक अपने लिये वो नालायक ही सुनते आया था।
      उसने भी कहीं न कहीं अपने मन में यह स्वीकार कर लिया था की उसका नाम ही शायद नालायक ही हैं ।

      तभी तो स्कूल के समय से ही घर के लगभग सब लोग कहते थे की नालायक फिर से फेल हो गया।

      नालायक को अपने यहाँ कोई चपरासी भी ना रखे।

      कोई बेवकूफ ही इस नालायक को अपनी बेटी देगा।

      शादी होने के बाद भी वक्त बेवक्त सब कहते रहते हैं की इस
      बेचारी के भाग्य फूटें थे जो इस नालायक के पल्ले पड़ गयी।

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      हाँ बस एक माँ ही हैं जिसने उसके असल नाम को अब तक जीवित रखा है,

      पर आज अगर उसके बाउजी को कुछ हो गया तो शायद वे भी..

      इस ख़याल के आते ही उसकी आँखे छलक गयी और वो उनके लिये हॉस्पिटल में बने एक मंदिर में प्रार्थना में डूब गया।

      प्रार्थना में शक्ति थी या समस्या मामूली,

      डाक्टरों ने सुबह सुबह ही बाऊजी को घर जाने की अनुमति दे दी।

      घर लौटकर उनके कमरे में छोड़ते हुये बाऊजी एक बार फिर चीखें,

      “छोड़ नालायक ! तुझे तो लगा होगा कि बूढ़ा अब लौटेगा ही नहीं।”

      उदास वो उस कमरे से निकला, तो माँ से अब रहा नहीं गया,

      “इतना सब तो करता है, बावजूद इसके आपके लिये वो नालायक ही है ?”

      विवेक और विशाल दोनो अभी तक सोये हुए हैं उन्हें तो अंदाजा तक नही हैं की रात को क्या हुआ होगा …..बहुओं ने भी शायद उन्हें बताना उचित नही समझा होगा ।

      यह बिना आवाज दिये आ गया और किसी को भी परेशान नही किया

      भगवान न करे कल को कुछ अनहोनी हो जाती तो ?

      और आप हैं की ?

      उसे शर्मिंदा करने और डांटने का एक भी मौका नही छोड़ते ।

      कहते कहते माँ रोने लगी थी

      इस बार बाऊजी ने आश्चर्य भरी नजरों से उनकी ओर देखा और फिर नज़रें नीची करली

      माँ रोते रोते बोल रही थी
      अरे, क्या कमी है हमारे बेटे में ?

      हाँ मानती हूँ पढाई में थोङा कमजोर था.
      तो क्या ?
      क्या सभी होशियार ही होते हैं ?

      वो अपना परिवार, हम दोनों को, घर-मकान, पुश्तैनी कारोबार, रिश्तेदार और रिश्तेदारी सब कुछ तो बखूबी सम्भाल रहा है

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      जबकि बाकी दोनों जिन्हें आप लायक समझते हैं वो बेटे सिर्फ अपने बीबी और बच्चों के अलावा ज्यादा से ज्यादा अपने ससुराल का ध्यान रखते हैं ।

      कभी पुछा आपसे की आपकी तबियत कैसी हैं ?

      और आप हैं की ….

      बाऊजी बोले सरला तुम भी मेरी भावना नही समझ पाई ?

      मेरे शब्द ही पकङे न ?

      क्या तुझे भी यहीं लगता हैं की इतना सब के होने बाद भी इसे बेटा कह के नहीं बुला पाने का,

      गले से नहीं लगा पाने का दुःख तो मुझे नही हैं ?

      क्या मेरा दिल पत्थर का हैं ?

      हाँ सरला सच कहूँ दुःख तो मुझे भी होता ही है,

      पर उससे भी अधिक डर लगता है कि कहीं ये भी उनकी ही तरह लायक ना बन जाये।

      इसलिए मैं इसे इसकी पूर्णताः का अहसास इसे अपने जीते जी तो कभी नही होने दूगाँ.

      माँ चौंक गई …..

      ये क्या कह रहे हैं आप ?

      हाँ सरला …यहीं सच हैं

      अब तुम चाहो तो इसे मेरा स्वार्थ ही कह लो।

      “कहते हुये उन्होंने रोते हुए नजरे नीची किये हुए अपने हाथ माँ की तरफ जोड़ दिये जिसे माँ ने झट से अपनी हथेलियों में भर लिया।”

      और कहा अरे …अरे ये आप क्या कर रहे हैं
      मुझे क्यो पाप का भागी बना रहे हैं ।
      मेरी ही गलती हैं मैं आपको इतने वर्षों में भी पूरी तरह नही समझ पाई .

      और दूसरी ओर दरवाज़े पर वह नालायक खड़ा खङा यह सारी बातचीत सुन रहा था वो भी आंसुओं में तरबतर हो गया था।

      उसके मन में आया की दौड़ कर अपने बाऊजी के गले से लग जाये पर ऐसा करते ही उसके बाऊजी झेंप जाते,
      यह सोच कर वो अपने कमरे की ओर दौड़ गया।

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      कमरे तक पहुँचा भी नही था की बाऊजी की आवाज कानों में पङी..

      अरे नालायक …..वो दवाईयाँ कहा रख दी
      गाड़ी में ही छोड़ दी क्या ?

      कितना भी समझा दो इससे एक काम भी ठीक से नही होता ….

      नालायक झट पट आँसू पौछते हुये गाड़ी से दवाईयाँ निकाल कर बाऊजी के कमरे की तरफ दौङ गया ।।

      लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.

      लेखक
      राहुल राम द्विवेदी
      ” RRD “

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