बरखा आई चली बयार
बरखा आई चली बयार,
फूलों का महका संसार ।
हरी हरी साड़ी में लिपटी,
कहीं ये फूली कहीं है चपटी,
लगती प्रकृति अति सुकुमार,
बरखा आई चली बयार ।
गरड़ गरड़ जब बादल गरजे,
धक धक धक हर जियरा धड़के,
बिरही जन को लगे कटार,
बरखा आई चली बयार ।
इंद्रधनुष ने झूला डाला,
उस पर झूल रही सुरबाला,
सांस धोंकनी, तीखी मार,
बरखा आई चली बहार ।
सरर सरर जल ऐसे बरसे,
धरती धीरे-धीरे सरसे,
माझी थाम लियो पतवार,
बरखा आई चली बयार ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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